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________________ 781 बोला था, कासी, कोमल लिच्छवी और मल्लिक यादि मठारह सहायकारी की मांगों को वे स्वीकार करना चाहते हैं अथवा उसके विरूद्ध युद्ध करेंगे में उपर्युक्त अठारह राजों ने प्रसंगोचित उत्सव किया था।" इन सब बातों से स्पष्ट है कि उन सब सहायकारी मण्डलों का एक लक्षण यह था कि वे इनमें से अधिकांश महावीर और उनके उपदेश के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव में आ गए थे। वे सब धर्म से जैन थे या नहीं यह कहना तो कठिन है. परन्तु इतना तो निश्चय है कि ये सब शाब्दिक सहानुभूति की अपेक्षा उनको कुछ अधिक गहरी सहायता करते थे । राजों को बुलाकर पूछा था कि कुलिक इसके सिवा महावीर के निर्वाण प्रसंग 1 पहले मण्डल विदेह का विचार करने पर जाना जाता है कि 'उसकी राजधानी मिथिला थी जिसको कितने ही नेपाल की सीमा में ग्राया 'जनकपुर' नामक छोटे से गांव के स्थान पर होना कहते हैं परन्तु इन विदेहों का एक विभाग माली में आकर बन गया होना चाहिए महावीर की माता राजकुमारी त्रिशला जो विदेहदत्ता भी कही जाती है. प्रायः इसी विभाग की थी। जैसा कि पहले कहा जा चुका है. जैनसूत्रों में महावीर के विदेहों से सम्बन्ध के विषय में यहां वहां छुटपुट उल्लेख मिलते हैं । ग्राचारांगसूत्र में नीचे का उल्लेख है : महावीर की माता के तीन नाम थे शिलाविदत्ता और प्रियकारिणी।" 4 "उस समय में, उस काल में श्रमण भगवान् महावीर, ज्ञातृ क्षत्रिय, ज्ञातृपुत्र, विदेहवासी, विदेह का राजकुमार. विदेहे नाम से तीस वर्ष तक रहे थे ।" " " कल्पसूत्र में लिखा है कि" श्रमरण - भगवान् महावीर..., ज्ञातृ क्षत्रिय, ज्ञातृ क्षत्रि के पुत्र, ज्ञातृवंश के चन्द्रमरिण विदेह विदेहदत्ता का पुत्र, विदेह निवासी, विदेह का राजकुमार - विदेह में जब कि उनके माता पिता का देहान्त हुआ तब तक तीन वर्ष रह चुके थे। फिर जैनसूत्रों से नीचे लिखे तथ्य भी समर्थित होते हैं- 1. विदेहों का एक कुल विदेह की राजधानी वैशाली में ग्राकर बस गया था । 2. त्रिशला देवी इसी विदेह कुल की थी और महावीर विदेहों के साथ गाढ़ मम्बन्ध से जुड़े हुए थे | इतना होने पर भी पहले तथ्य को और भी अधिक स्पष्ट करना आवश्यक है । जैसे महावीर विदेही थे. वैसे ही वे. याकोवी के अनुसार, वैसालिक भी थे याने वैशाली - निवासी भी । इस प्रकार राजा सिद्धार्थ 1. याकोबी, मंबुई पुस्त. 22 प्रस्ता. पृ. 12 देखो वहीं पू. 266; लाहा, वि. च. समक्षत्रिया ट्राइस ग्राफ एंजेंट एण्डिया. पृ. 1; रायचौधरी, वही, पृ 128 भगवती, सूत्र 300, पृ. 316: हेमचन्द्र, वही, वही स्थान: कसूत्र सुवोधिक टीका. सूत्र 128. पृ. 121 प्रधान वही, पृ. 128 129 हरनोली, वही भाग 2. परि 2, 59-601 , 2. रायचौधरी वही. पू. 74 समग्स गां भगवो महावीरस्स माया...तिसलाइवा विदेहदिन्ना इवा पीइकारिणी इवा... | सुबोधिका टीका सूत्र 109. 89 । कल्पसूत्र. 3. याकोबी, वही, पृ. 193 5. वही, पृ. 256 । Jain Education International 4. वही, पृ. 194 T 6. वही. प्रस्तावना पृ. ।। । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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