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________________ 76 ] था। यही नहीं अपितु उनके समय के ही पार्श्वनुयायियों के जैनागमों में उल्लेखों से यह प्रमाणित होता है कि उत्तर भारत के बहुत बड़े भाग में तब जैनधर्म खूब ही प्रचार में था हालांकि इसको निश्चित भौगोलिक सीमाएं आज नहीं सींची जा सकती है । ' यह भी पहले कहा जा चुका है कि पार्श्वनाथ के 16000 साधू, 38000 साध्वियां 164000 श्रावक और 327000 श्राविकाओं के अतिरिक्त कितने ही हजार व्रतधारी स्त्रीपुरुष भी अनुयायी थे । * पार्श्वनाथ से महावीर के समय तक के ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान कोई भी तथ्य नहीं मिलते हैं । जैन इतिहास में 250 वर्ष का यह काल एकदम कोरा ही कहा जा सकता है क्योंकि उस काल के न तो कोई ऐतिहासिक अभिलेख और न स्मारक ही ऐसे प्राप्त होते हैं जिन पर इतिहास संकलन के लिए विश्वास किया जा सके। फिर भी इतना तो निश्चित है ही कि इन दोनों तीर्थंकरों के ग्रन्तरिम काल का ऐतिहासिक ग्रवच्छेद भरा जाना सम्भव नहीं होने पर भी बिना किसी शेखम के यह कहा जा सकता है कि इस नमस्त अन्तरिम काल में भी जैनधर्म एक जीवित धर्म रहा था ।" हम यह भी देख आए हैं कि पार्श्व के शिष्यों ने अपना धर्मप्रचार कार्य यथावत चालू रखा था और महावीर एवम् उनके शिष्यों ने ई. पूर्व छठी शती में संस्कारित जैनधर्म के प्रति ग्राकर्षित करने और उस वर्ग के अनेक प्रतिनिधियों का ग्रपने मत में लाने के लिए मिलते रहना पड़ा था । महावीर काल का विचार करते समय ऐसा अनुमान होना स्वाभाविक है कि कुछ स्थिति बच्छी होगी । परन्तु यहां भी जैन और बुद्ध धर्मशास्त्रों को एवम् कुछ ग्रन्य दन्तकथाओंों को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं मिलता है जिस पर हम विश्वास कर सकें। " यह हमारा सौभाग्य ही है कि जैनशास्त्रों में सत्य तथ्य और घटनाएं सुरक्षित मिलती हैं जो छुटीछवाई और प्रशांश में होते हुए भी इस काल के जैन इतिहास का सजीव चित्र हमारे नेत्रों के समक्ष प्रस्तुत करने को पर्याप्त हैं। पार्श्व की भांति ही महावीर भी उस काल के राजवंशों से रक्त सम्बन्ध सम्बन्धित थे। उनके पिता सिद्धार्थ स्वयम् बड़े उमराव के घर ज्ञातृ क्षत्रिय वंश के थे। उनका मुख्य निवास स्थान कुण्ठपुर या कुण्डग्राम (कुण्डगाम * या पर जैनशास्त्रों में जैसा वर्शन उनका किया हुआ मिलता है। | 1. हम नहीं कह सकते कि मजुमदार किन ग्राधारों से पार्श्व के समय के जैनधर्म की सीमाओं की भौगोलिकता निश्चित की है। उसका जैनधर्म" विद्वान लेखक कहता है कि बंगाल मे गुजरात तक फैला हुआ था। मालदह और बोगड़ा जिला उसके धर्म के मुख्य केन्द्र थे उसके धर्म में पाने वाले अधिकांशतया हिन्दुयों के निम्न वर्ग और बनाये लोग थे... राजपूताने में उसके धनुयायी बड़े शक्तिशाली थे..." - मजुमदार वही और वही स्थान । 2. देखो याकोबी, संबुई, पुस्त. 22, पृ. 274 । एवं विहरतो भर्तुः सहस्राः पोडशपंयः । अष्टाविण साध्यानां तु महात्मानाम् ॥... आवका लक्ष्मेक चतुः पण्ठिहस्रयुक । धाविका 315, पृ. 219 | देखो कल्पसूत्र, त्रिलक्षी सहस्र सप्तविंशतिः ।... - हेमचन्द्र. वही, श्लो. 312, 314 सुवोधिका टीकासू 161-164 पू. 130-131 1 3. देखी हरनोली उसदस्य भाग 2, पृ. 6 टिपण 8 1 4 भारत का प्राचीन इतिहास याज भी हमारे पुरखों के उन नक्शों के समान ही है जिनमें 'भगोलवेत्तानगरों के देते थे... हालांकि जैनों ने अपनी दृष्टि ही से ऐतिहासिक श्रीमती स्टीवन्सन, वही, पृ. 7 1 प्रभाव के कारण पथहीन बनों में हाथी चित्रित कर के ज्ञात का तथ्यों से मेल बैठाना बड़ा ही कठिन है 5. मुजफ्फरपुर ( तिरहुत) जिले की वैशाली (याधुनिक वसा का ही यह दूसरा नाम है। वस्तुतः (कुण्डग्राम) जिसे आज कल वसुकुण्ड कहते हैं, प्राचीन वैशाली नगर का जो कि तीन भाग याने वैशाली(वसाढ़) कुण्डपुर (वसुकुण्ड ) पोरगा (वाणिया का था, एक भाग था देखो, वही, पृ. 107 वाणियगाम ! I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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