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________________ [75 उसी सत्र में काापल्य सम्बन्धा दूसरा उल्लख भा हम प्राप्त होता है यार यह कापिल्य के राजा संजय का है जिमने 'राज्य त्याग कर पूज्य माधू गर्दभिल्ल में जैनदीक्षा स्वीकार कर ली थी। इससे मा सम्भव लगता है कि अति विस्तीर्ग और प्रभावशाली मालह राज्यों में के दो' कामी और पांचाल विवाह सम्बन्ध से जुड़ गए थे । फिर जब हम पार्जीटर की तैयार की राजबंशावलियों में दक्षिण-पंचाल के राजा रूप मे किमी मनजिन का नाम पाते हैं तो वह बात नि संशय मत्य हो लगती है और नाम में थोड़ा मा सूक्ष्म फेर होने से इस मेनस्ति को हम ऐतिहामिक दृष्टि में प्रसेनजित विना किमी कठिनाई के स्वीकार कर' सकते हैं । एक मात्र और अति उपयोगी अनुमान जो इस पर से निकाला जा सकता है वह यह है कि जैनधर्ममहावीरकाल की अपेक्षा पार्श्वनाथ-काल में कम राज्यायय प्राप्त नहीं था। उसके अनुगामी की अपेक्षा उनके प्रभाव का विस्तार-क्षेत्र किचिन्मात्र न्युन नहीं था । पार्श्वनाथ काशी के राजवंश के पुरुष और पंचाल राजा के जमाता " और उनका निर्वाण बिहार की पारमनाथ पहाड़ी पर हुया था।" ऐसे राजवंशों का पृउबल प्राप्त होने के कारण यह स्वाभाविक है कि उनका समकालिक राज्यवंशा और अपने ही राज्य की प्रजा पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा होगा। मुत्रकृतांग एवम् अन्य जैनागमों से हम जान सकते हैं कि महावीर के समय में भी मगध के पास पास में पाश्र्वानुयायो थे। जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, स्वयम् महावोर का अपना कुटुम्ब भी पाश्र्वनाथ का धर्म पालता 1. कम्पिले नयरे राया...। नामेण संजये...।। संजो चइउ र निक्वन्ता जिगासासणे । गद्धमालिस्स भगवग्रो अगागारस्स अन्ति ए। उत्तराध्ययनम्त्र, अध्याय 18, गाया ।, 19। देखो याकोबी. वही, पृ. 80, 82; रायचौधरी, वही और वही स्थान । 2. 'जैन भी कामी की महानता की साक्षी देते हैं और वाराणसी के राजा अश्वसेन को उन पार्श्वनाथ का पिता लिखते हैं कि जिनका निर्वाण महावीर से 250 वर्ष पूर्व हया कहा जाता है अर्थात् ई. पूर्व 777 में वही. प्र. 61 । महावीर का निर्वाण ई. पूर्व 480-467 मानें तो पार्श्व के निर्वाण की तिथि ई. पूर्व 730-717 ग्राती है। 3. देखो पार्जीटय, शेंट इग्धियन हिस्टोरिकल ट्रेडीशन, पृ. 146; प्रधान, क्रोनोलोजी ग्राफ, जेंट इंडिया प. 10314. 'दुसरे सम्बन्धों में पहला अश छोड़ दिया गया है...भागवत में प्रमजन को अयोध्या का मेनजित कहा है ।' पार्जीटर, वही, पृ. 127 । 5. मजुमदार यहां किसी भ्रम में पड़े हए लगते हैं। उनके मत से पावं उपलब्ध के राजा प्रमेन जिन के जामना थे और इसप्रकार वे दो राजवंश याने कामी पोर कौशल को रक्तसम्बन्ध में जोड़ देते हैं। परन्तु मेरी सम्मति म उनने महावीर-कालीन प्रसेनजित के माथ इस प्रमेनजित को मिला दिया है जो कि जैनधर्म के महान् गशुनागवंशीय नपति बिंबसार का श्वसुर था। हमने यह पहले ही देख लिया है कि महावीर 72 वर्ष जीवित रहे, थे और पार्श्वनाथ 100 वर्ष तक । देखो मजुमदार, वही, पृ. 495, 551, 552; श्रीमती स्टीवन्सन भी कने ही भ्रम में पड़ी हुई प्रतीत होती है क्योंकि वह कहती है पार्श्वनाथ का विवाह प्रभावती, अयोध्या के राजा प्रमेनजित की पुत्री से हुअा था। श्रीमती स्टीवन्मन, वही, पृ. 48 । 6....उनका निर्वाण बिहार के समेतशिखर पहाड़ पर हुअा था और तभी से वह पारसनाथ पहाड़ी भी कहलाने लगी -वही, पृ. 49 । 7. राजगृह के बाहर, उत्तर-पूर्व दिशा में, नालन्दा नाम का उपनगर था...और यहां किसी घर में पूज्य गोतम स्वामी ठहरे हुए थे। पूज्य संत जिस उद्यान में ठहरे थे, उसी में पेढाल का पुत्र उदक 'निग्रंथ और पापित्य ठहरा हुमा ।... "याकोबी, वही, पृ. 419-420; जि । पासि...तस्स...के कुमार समो...सावत्यि पुरसागए...उत्तराध्ययनसूत्र, अध्या, 23, गाथा 1-3 । देखो याकोबी, वही, प. 118-120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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