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हेमचन्द्र के कोश के आधार सेना ने कुशस्थल और कनौज याने कान्यकुब्ज को एक ही बताय है । " इसका समर्थन धन्य विद्वान भी करते हैं।" फिर डॉ. राय चौधरी कहते हैं कि प्रसिद्ध नगर कान्यकु अथवा कन्नौज की स्थापना" के साथ पांचाल भी सम्बन्धित हैं । फिर पांचाल और कासी के राज्य पास-पास ही ये इसको जैन और बौद्ध साहित्य भी समर्थन करता है बौद्ध संगुत्तरनिकाय से घोर जैन भगवतीसूत्र से मालूम होता है कि इस समय प्रर्थात ई. पूर्व 8वीं सदी में सौलह महाजनपद कहे जाने वाले बहुत विस्तीर्गा और शक्ति सम्पन्न सौलह राज्य थे। और उनमें कासी का उल्लेख यद्यपि दोनों में ही समान रूप से हैं परन्तु पांचाल का उल्लेख तो सिर्फ पहले में ही है ।"
पांचाल के इतिहास का विचार करने पर हम देखते हैं कि यह स्थूल रूप से रोहिलखण खण्ड और मध्य दोघाव के कुछ अंग से मिलता जुलता है। "महाभारत, जातक, धौर दिव्यावदान में इस राज्य को उत्तरी और दक्षिणी ऐसे दो विभागों में विभक्त बताया है। भागीरथी (गंगा) इन्हें विभक्त करती हो गई है। महाकाव्यानुसार उत्तर-पांचाल की राजधानी पहिन्छन या छत्रावती बरेली प्रान्त के एमोनाला निकटस्थ हाल का रामनगर) थी जब कि दक्षिण - पांचाल की कौपिव्य श्री श्रीर गंगा से चम्बल तक उसका विस्तार माना जाता था ।"
पांचाल के इस इतिह को सूचना के लिए जब जंनसूत्रों को सोजते हैं तो हमें एक या दूसरी प्रकार से सम्बन्ध का पता लगता है । उत्तराध्ययनसूत्र में ब्रह्मदत्त नाम के पांचाल के राजा का उल्लेख आता है। इसका कांपिल्य में लगी की कोख से जन्म हुया था ब्रह्मदत्त सार्वमोम याने चक्रवती राजा था। पूर्व जन्म के अपने भाई पिस से वह मिलता है जो इस जन्म में जैन धमण हो गया था ब्रह्मदत्त भोगविलाम में इतना तल्लीन हो गया था कि उसके भाई श्रमरत वित्त का उपदेश उसे कुछ भी प्रभावित नहीं कर सका और अन्त में वह नरक में गया । "
1. दे, वही, पृ. 88, 111 । 4. कान्यकुब्ज को गाधिपुर, महोदय बौर कुणस्थल भी कहा जाता था ।' कनियम, एंजेंट ज्योग्राफी ग्राफ इण्डिया (मजुमदार सम्पादित ) पु. 707 1
2. राय चौधरी पोलिटिकल हिस्ट्री ग्रॉफ एंसेंट इण्डिया पृ. 86 थी।" स्मिथ, अली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ. 391 ।
कनोज... पांचाल राज्य की राजधानी यतः मुख्यतः
3. राय चौधरी, वही, पृ. 59.60 4. राय चौधरी, वही, पृ 60 6. रायचौधरी, वही, पृ. 85 । देखो स्मिथ, वही, पृ. 391-392; दे, वही, पृ. 145 भी ।
देलो हिप डेविड्स केहि भाग 1, पृ. 172 1
5. वही पृ. 85 । देखो स्मिथ, वही, पृ. 391, 392; दे, वही, पृ. 145 1
7. कांपिल्य के पूर्व इतिहास के विषय में कुछ भी जानकारी नहीं है । कदाचित् यह कांपिल्य फर्रुकाबाद जिले का प्राधुनिक कंपिल ही हो। स्मिथ वही, पृ. 392
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8. चुलगीए वम्मदत्तो...।। कम्पिल्ले सम्मूझो चित्तो...... वम्मं सोऊरण पव्वइओ || पंचालराया विय बम्मदत्तो ...तस्य वयणं प्रकाउ म नरए पविट्टो उत्तराध्ययनसूत्र अध्याय 13, गाथा 1, 2, 34 देखो याकोबी, सेबुई, पुस्त. 45, पृ. 59-61। त्रि । चित्त) और सम्मत ( ब्रह्मदत्त) की कथा और जो जो उन पर बीती, उसका ब्राह्मण, जैन और बौद्धों में समान रूप से वर्णन है। रायचौधरी वही, पृ. 86 शार्पेटियर, उत्तराध्ययनसूत्र, भाग 2, पृ. 328-331 1
पर्न जन्मों में
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