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________________ 60 ] गोशाल के लिए इतना ही कहना पर्याप्त है। हम देख पाए हैं कि महावीर के केवली जीवन के चौदहवें वर्ष में गोशाल को मत्यू हई थी। यह घटना स्वभावतया इस बात से मेल खा जाती है कि उसकी मृत्यु महावीर निर्वाण के 16 वर्ष पूर्व हुई कि जो महावीर के कुल 30 वर्ष के केवली जीवन में से 14 वर्ष घटाने से बच रहते हैं । महावीर निर्वाण की तिथि जो हमने ई. पूर्व 480-467 के बीच में होना माना है, से गोशाल को मृत्यु ई. पूर्व 486-483 के बीच में कभी भी हुई कही जा सकती है। भगवतीसूत्र के अनुसार गोशाल की इस मृत्यु तिथि का इस बात से भी समर्थन होता है कि उसकी मृत्यु और राजा कुरिणया (अजातशत्रु) व वैशाली के राजा चेड़ग के बीच में अद्वितीय सचेनक हाथी के स्वामित्व के कारण हुए युद्ध की घटना समकालिक है। यह हाथी कुरिणय के पिता बिबसार ने चेडग राजा की पुत्री चेल्लणा नाम की अपनी पत्नि से उत्पन्न कनिष्ठ पुत्र विहल्ल को दिया था । राज्यगादी पर बलात् अधिकार कर अजातशत्रु ने अपने कनिष्ठ भाई के पास यह हाथी प्राप्त करने की चेष्टा की। परन्तु विहल्ल उस हाथी को लेकर अपने नाना वैशाली में भाग गया। जब कुरिणय शांति से उसे लौटा लाने में सफल नहीं हुआ तो उसने चेडग से युद्ध प्रारम्भ कर दिया।" इस प्रकार यह युद्ध कुरिणय ने राजसत्ता प्राप्ति की उसी समय में ही किया ऐसा संभव लगता है और इसे ई. पूर्व. 496 में रख सकते हैं। आजीवक सम्प्रदाय का ऐतिहासिक दृष्टि से यदि विचार करें तो हम देखते हैं कि वह उसके प्रवर्तक के साथ ही समाप्त नहीं हो गया था ! बौद्धों के साथ के उसके सम्बन्ध का विचार करने पर मालूम होता है कि बौद्धों को "जैन अथवा आजीवक किसी के साथ भी खास वैर रखने का कोई कारण नहीं था ।" अशोक और दशरथ जैसे बौद्ध राजों ने आजीवकों को नागार्जुनी और बराबर पहाड़ी पर की गुफाएं इसी भाव से अर्पित की थी कि जिस भाव से उनने अन्य स्थलों पर बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया था और ब्राह्मणों को दक्षिणा दी थी । बौद्धों का वैरभाव पाजीवकों अथवा जैनों पर नहीं उतरा था । परन्तु बाद में जाकर ब्राह्मणों पर उनकी वैर बुद्धि हो गई थी। आजीवकों का सबसे पहला उल्लेख अशोक के तेरहवें वर्ष अर्थात् ई. पूर्व 257 में गया के पास की बराबर की टेकरी की चट्टान में खोदकर बनाई गई दो गृहानों की दीवालों पर खुदे संक्षिप्त शिलालेख में मिलता 1. हरनोली, वही, परिशिष्ट 1 प. 7। एगहत्थिरणापि णं पम् कणिए राया पराजिणित्तए । भगवती, पागमोदय समिति, प. 316, सुत्र 300 । देखो हेमचन्द्र, त्रिषष्टि--शलाका, पर्व 10, श्लो. 205-206 । 2. हरनोली, वही और वही स्थान । देखो टानी, कथाकोश, प 178-9 भी ।...न दद्यास्तदायुद्धसज्जो मवैमीति :--अावश्यक सूत्र, पृ. 684 । 3. डॉ. हरनोली, महावीर निर्वाण ई. पूर्व 484 में मनाते हुए, गोशाल की मृत्यु और अजातशत्रु एवं उसके नाना के बीच युद्ध की तिथि ई. पूर्व लगभग 500 बताते हैं । देखो हरनोली, एंरिए, भाग 1, पृ. 26।। 4. शास्त्री-बैनरजी, वही, पृ. 55 । 5. अशोक का राज्याभिषेक ई. पूर्व 270-269 में मान कर ही । देखो स्मिथ, अशोक, 3 य संस्क., पृ. 73%; मुकर्जी, राधाकुमुद, अशोक पृ. 37 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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