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________________ समालोचना करते हुए भारतवर्ष के इतिहास के एक अत्यन्त अन्धकाराविष्ट युग पर अत्यन्त सुन्दर रीति से प्रकाश डाला है। श्री शाह का यह ग्रन्थ 'इण्डियन हिस्टोरिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के भारतीय इतिहास का अभ्यास का छठा ग्रन्थ है। यह प्रकाशन उनके अनुगामियों संस्था के हाल के शोधस्नातकों को नवीन प्रोत्साहन देगा यही माशा की जाती है । भारतवर्ष के भूतकाल में अभी भी बहुत से अगम्य तत्व पड़े हैं जो कि भविष्य की प्रजा के कल्याण के लिए भारतवर्ष के भावी इतिहासकारों से अविरत परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं इतिहासवेत्ता का कार्य सत्य की खोज करना ही है । यदि हम उसको एकाग्र, विशुद्ध और निष्पक्ष दृष्टि से अवलोकन या निरीक्षण करें तो सत्य स्वतः ही सदा प्रकट हो उठेगा और फिर वह सत्य स्वयम् हमारे प्रयासों की विजय-गाथा बन जाएगा । नारीख 15 जनवरी, 1931 Jain Education International एच. हेरास, एस. जे. डाईरेक्टर इण्डियन हिस्टोरिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, सेंट जेवियर्स कालेज बम्बई For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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