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से अपहृत प्रतिभा का उल्लेख शिलालेख के मुख्य भाग में होने से स्मिथ और जायसवाल इस निर्णय पर पहुंचे थे कि खारवेल के शिलालेख के अनुसार महावीर का निर्वाण ई. पूर्व 527 में और बुद्ध का निर्वाण ई. पूर्व 543 में हआ था । और यह प्राचीन परम्परा का ही समर्थन करता है।
हम आगे देखेंगे कि खारवेल के शिलालेख पर आधारित ये अनुमान श्री जायसवाल द्वारा सूचित अन्तिम आकलन का विचार करते हुए कुछ भी उपयोगी नहीं हैं। उसमें निर्देशित समय का मौर्यकाल से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है । फिर यह तथ्य भो कुछ महत्व का नहीं है क्योंकि महान् इण्डो-ग्रीक राजा डिमोट्रियस के उल्लेख का विचार करने पर हम शिलालेख की इस तिथि पर प्रायः पहुंच जाते हैं। इससे अति महत्व का फेरफार जो हुआ वह यह है कि उल्लिखित नहर नंदवंश के 103 वें वर्ष में खुदाई गई थी न कि 300 वर्ष पूर्व । इस प्रकार वह मूल आधार कि जिसके कारण श्री स्मिथ ने शिशुनागों की सारा वंशावली 50 वर्ष पीछे हटाने का झटपट साहस कर लिया था, भूपतित हो जाता है। यह महान् इतिहासवेत्ता कहता है कि 'नवीन प्रमाणों से मैं इतना अधिक प्रभावित हुआ हूं कि मेरी अब छप रही और प्रकाशित होने वाली “आक्सफर्ड हिस्ट्री ऑफ इण्डिया" में शिशुनागों और नंदों का पूर्व समय में होना माना । परन्तु जिस विद्वान को श्री स्मिथने इस सीमातक उचित ही विश्वास किया था और जो अपने दृढ़ विश्वास पर डटे रहने के महान सम्मान का पात्र भी है, उसने ही अधिक लम्बे समय के अभ्यास और खोज के पश्चात् शिलालेख के पूर्व आकलन को एकदम ही बदल दिया है।।
अब देखिए कि श्री जयसवाल कहते हैं कि “इससे यह भी सिद्ध होता है कि ई. पूर्व 450 के लगभग या उससे कुछ पूर्व भी जैन प्रतिमा का हो। यह बताता है कि महावीर के निर्वाण की तिथि वही होना चाहिए कि जो हम पृथक पृथक जैन कालगणना को पू. में और पाली ग्रन्थों के साथ-साथ आकलन करने पर प्राप्त करते हैं और जो सब के आधार से ई. पूर्व 245 निश्चित होती है।... यह कुछ विचित्र सा अवश्य ही लगता है क्योंकि जिस नन्दराज का यहां उल्लेख हुअा है उसे शिशुनागवंशी नन्दिवर्धन जिसका समय अलबरूनी और अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से श्री जायसवाल ने उपर्युक्त नन्द का ही माना है, के साथ विशेष रूप से क्यों जोड़ा जाता है, यह कुछ भी समझ में नहीं पाता है।
यह राजानन्द जैसा कि हम दूसरे अध्याय में प्रागे देखेंगे, डॉ. शार्पटियर के अनुसार, नव नन्दों में के एक से ठीक-ठीक मिलता प्राता है कि जिनमें का पहला 'हेमचन्द्र द्वारा बहुत अननुकूल वरिणत मालूम नहीं देता है।"
1. 'पाली कथानकों के अनुसार महावीर का निर्वाण बुद्ध से पूर्व हो गया था। परन्तु अन्य प्रमाण ई. पूर्व 467 का समर्थन करते हैं जिसकी कि डा. शाटियर अनुरोध करता हैं और यह तिथि भद्रबाह की परम्परागत तिथि से भी मेल खा जाती है जो कि चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालिक थे। ई. पूर्व 527 (528-7), जो कि अत्यधिक प्रमाण में महावीर की निर्वाण तिथि कही जाती है, उन अनेक तिथियों में से एक है। परन्तु इसका समर्थन खारवेल के शिलालेख से होता है।' वही, पृ. 49 । 2. जायसवाल, वि. उ. प्रा. प्रत्रिका, सं. 13,प. 246। 3. वही, पृ. 221 आदि । 4. स्मिय, रा. ए. सो. पत्रिका, 1918, पृ. 547। 5. जायसवाल, वही, पृ. 246। जायसवाल की यह तिथि उन कालक्रमानुसारी तथ्यों पर आधारित है कि जिनको उनने पाली, पुराण और धर्मी परम्परानों के परिशीलन से निकाला है। देखो वही सं. 1, पृ. 114 । 6. जायसवाल, वही, सं. 13, पृ. 240-241 । 7. शापटियर, वही, पृ. 171-172 ।
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