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अनेक प्रसंगों के अधिक अनुकूल ही लगती है । डा. टामस ', श्री स्मिथ आदि विद्वानों ने चन्द्रगुप्त के राज्यारोहा का काल ई. पूर्व 325 से 321 अथवा उसके पास पास रखने को सम्मत हैं।" यदि इस बात को हम अपना ग्राधार बनाएं तो हमें महावीर निर्वाण की तिथि ई. पूर्व लगभग 480-467 के बीच पाती लगती है और बुद्ध की ई. पूर्व 477 की ठीक की हुई निर्वारण तिथि से भी संगत हो जाती है जो कि 'लगभग सही प्रमाणित हो चुकी है ।'' इसका कारण यह है कि स्पष्ट रूप से इन दोनों महापुरुषों के निर्वाण में बहुत ही थोड़े वर्षों का अन्तर होना चाहिए ।" फिर वर्धमाग के निर्वाण की स्वीकृत वह तिथि उन किसी भी प्रमाणों और तर्कों के विरूद्ध नहीं है जो कि ऊपर गिनाए जा चुके हैं ।
थे कि खारवेल का शिलालेख मौर्य 300 वर्ष पूर्व याने ई. पूर्व 470 में
फिर भी महावीर के किए जैनधर्म में सुधार का विचार करने के पूर्व श्री जायसवाल, बेतरती और धन्य विद्वानों द्वारा प्रस्तुत यथायें माने जाते धनुमानों से कालगणना में उत्पन्न हो रही भ्रमणा के सम्बन्ध में भी यहां कुछ कह देना उचित है। जैसा कि हम 'कलिंग देश में जैनधर्म' शीर्षक अध्याय में धागे देखेंगे कि अभी तक श्री विसेट स्मिथ और अन्य विद्वानों की भांति ये विद्वान भी ऐसा मानते युग के 165 वें वर्ष का है राज मुस्रिय-काले याने ई. पूर्व 170 का कलिंग में किसी नन्द राजा के नहर खुदवाने का इसमें उल्लेख माता है।" महत्व बढ़ जाता है । नौंवा शिशुनाग राजा नन्दिवर्धन जिसकी तिथि पहले इस नन्दराजा को मिला देने से स्मिथ सारी शिशुनाग वंशावली को पलट देने की सीमा तक पहुंच गए थे और अजातशत्रु को पहले के ई. पूर्व 491 के स्थान में ई. पूर्व 554 विंवसार को ई. पूर्व 519 के स्थान में 582 में उनने रख दिया T 19 बुद्ध और महावीर दोनों की समकालीन वंशावली में यह फेरफार देख कर और नंदराज
इस बात से यह ऐतिहासिक तिथि का ई. पूर्व 418 स्वीकृत हुई थी, के साथ
1. वही, पृ. 471, 472
2. स्मिथ भर्ती हिस्ट्री ग्राफ इण्डिया (4था संस्करण), पृ. 2061 3. प्रो. कनं चन्द्रगुप्त की राज्यारोहण तिथि ई. पूर्व 321 और 322 निश्चित की है। तदनुसार निर्वाण तिथि ई. पूर्व 477 और 475 के बीच में कुछ कुछ पड़ती है जो कि कुछ वर्षों के हेरफेर सहित सत्य ही प्रतीत होती है क्योंकि बुद्ध की संशोधित निर्वाण तिथि ई. पूर्व 477 से यह मेल खाती है । याकोबी, परिशिष्ट पर्वन् प्रस्तावना, पृ.61 4. याकोबी, वही और वही पृष्ठ ।
5. देखो दासगुप्ता, वही भाग 1, पृ. 173
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6. जायसवाल, वि. उ. प्रा. पत्रिका, सं. 3, पृ. 425-472; और सं. 4 पृ. 364 आदि बेनरजी (रा. दा), वि. उ. प्रा. पत्रिका, सं. 3, पृ. 486 आदि ।
7. स्मिथ, रा. ए. सो. पत्रिका, 1918, पृ. 543-547
8. वही, पृ. 5461
9. अपने ग्रन्थ' अर्ली हिस्ट्री ग्राफ इण्डिया के तृतीय संस्करण में मैंने नन्दिवर्धन का राज्यारोहण समय सशंक ई. पूर्व लगभग 418 में रखा था। अब वह ई. पूर्व लगभग 470 में रखा जाना चाहिए या इससे भी कुछ पूर्व ।
उस शोध से प्रजातशत्रु या कणिक ( शिशुनाग 5 वां ) को कम से कम ई. पूर्व लगभग 554 में और उसके पिता बिसार याने बेसिक को (शिशुनाग 4 था) कम से कम ई. पूर्व लगभग 582 में रखना होगा।' स्मिथ, वही, पृ. 546-547 | अपने प्रथम 1904 के संस्करण में स्मिथ ने नन्दिवर्धन को समय ई. पूर्व 401 रखा था, पृ. 33; देखो वही, 41; वही. पृ. 51 (4था संस्करण) ।
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