SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 33 मान सकते हैं। इससे महावीर निर्वाण और विक्रम के राज्यारोहण में 2551-155 वर्ष मिल कर कुल 410 वर्ष का अन्तर हो जाता है और इससे महावीर निर्वाण ई. पूर्व 467 में होना ही निश्चित होता है और यह साल मेरे अभिप्रायानुसार उसके साथ सम्बन्धित सब प्रसंगों से अनेक प्रकार से ठीक बैठ जाता है और इसलिए इसे ही सत्य स्वीकार किया जा सकता है।'1 .इनसे अतिरिक्त और भी अनेक कारण हैं कि जो एक या दूसरी प्रकार से महावीर निर्वाण की इस तिथि के निर्णय किए जाने से हमारी सहायता करते हैं। उन सब की चर्चा में उतरने के स्थान में उनको यहां कह देना मात्र उचित होगा। भद्रबाहु के निर्वाण की तिथि और उनका चन्द्रगुप्त के साथ सम्बन्ध', जैनधर्म में हए तीसरे पंथभेद की तिथि और उसके साथ मौर्य राजा बलभद्र का सम्बन्ध', देवधिगरिण द्वारा निश्चित की हुई भद्रबाह के कल्पसूत्र में दी गई तिथि और ध्र वसेन के राज्यारोहण वर्ष में वल्लभी में एकत्रित महासभा की तिथि का सम्बन्ध और अन्त में स्थूलभद्र के शिष्य सहस्ति की तिथि एवम् उसका अशोक के पौत्र और उत्तराधिकार सम्प्रति के साथ सम्बन्ध । हमारे सामने इन सब ऐतिहासिक तथ्यों के होने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जि । निर्णय पर हम ऊपर पहुंचे हैं उस विचारणीय तिथि से सम्बन्धित अनेक तथ्यों के साथ पूरी पूरी संगति बैठ जाती है। फिर भी ई. पूर्व 467 की तिथि यद्यपि बहुत अशुद्ध तो नहीं है, तो भी महावीर निर्वाण की तियि यथार्थ रूप से नहीं स्वीकार की जा सकती हैं क्योंकि यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि हेमचन्द्र ने विक्रम संवत् और चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण में 255 वर्ष का अन्तर होने का और इससे जिस निर्णय पर पहुंचने का कि जैन कालगणनानुसार चन्द्रगुप्त का राजवंश ई. पूर्व 312 में प्रारम्भ हया था, सत्य स्वीकार कर लिया था इसमें तो कोई भी संदेह नहीं है कि चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण की निश्चित तिथि निकालना आज तक की उपलब्ध साक्षियों द्वारा असम्भव है। परन्तु फिर भी, इतनी अधिक अनिश्चितता की बात पर अधिक उहापोह न करते हुए, यह कहा जा सकता है कि प्राचीन तिथि अधिक उचित और तात्कालिक ऐतिहासिक वातावरण एवम् चन्द्रगुप्त के जीवन के 1. शार्पटियर, वही, पृ. 175। 2. भद्रबाहु के देहान्त की यह तिथि वीरात् 170 है जो परम्परागत वीर निर्वाण तिथी के हिसाब से ई. पूर्व 357 और याकोबी एवम् शाऐंटियर निर्णीत तिथि के अनुसार ई. पूर्व 290 पाती है । भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त के सम्बन्ध की दृष्टि से ई. पूर्व 357 सर्वेथा त्याय॑ है। 3. यह पंथभेद वीरात् 214 में हुआ था और मेरुतुग के अनुसार मौर्य राज्य का प्रारम्भ वीरात् 215 है। इसलिए हेमचन्द्र की गणना जो कि मौर्य राज्य का प्रारम्भ वीरात 155 कहता है, अधिक ठीक लगती है।। 4. यह तिथि वीरात् 980 या या 993 है। यदि बीर निर्वाण तिथि ई. पूर्व 467 लें तो ई. 526 के अनुकूल यह पाती है और वल्लभी पर ध्र बसेन के राज्यरोहण वर्ष से एक दम मेल खा जाती है। 5. मेरुतुग के अनुसार यह तिथि वीरात् 245 है और यह हेमचन्द्र की कालगणना के बहुत कुछ अनुरूप है जिसके अनुसार चन्द्रगुप्त वीरात् 155 में राज्य करना प्रारम्भ करता है क्योंकि अशोक की मृत्यु चन्द्रगुप्त से बाद 94 वें वर्ष में हुई थी और इससे सम्प्रति की राज्यारोहण तिथि वीरात् 249 पाती है। 6. देखो शाऐंटियर वही, पृ. 175-76; याकोबी, वही, पृ. 9, 10।। 7. काल निरुपण का हमारा दोषी ज्ञान, उस विश्वस्त सूचना से एक दम विपरीत है कि जो हमें देश और शासन के सम्बन्ध में प्राप्त है।' टामस (एफ. डब्ल्यू.),के. हि. ई., भाग 1, पृ. 731 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy