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जाना आवश्यक नहीं है । हेचमन्द्र के प्रस्तुत किए प्रमाण को स्वीकार कर लेने की वे शिफारिश करते हुए इस अनिबार्य निर्णय पर पाते हैं कि इस युग की तिथि ई. पूर्व 460 के लगभग ही होना चाहिए ।।
'मैंने यह बताने का प्रयत्न किया है' डा. शार्पटियर कहता है कि 'कलागणना की टीप जिस पर जैनों ने विक्रम संवत् के प्रारम्भ और महावीर निर्वाण के बीच का अन्तर 400 वर्ष होने की कल्पना की है, वह एक दम अर्थहीन है। समय की पूर्ति के लिए जो राजवंशालियां बनाई गई हैं वे एकदम इतिहास विरुद्ध और किसी भी प्रकार से मानी जा सके ऐसी नहीं हैं।..." जैन कथन के एकदम काल्पनिक आधार को एक ओर रख कर इन प्रसिद्ध विद्वानों जो अन्य प्रमाण प्रस्तुत किए हैं वे हैं बुद्ध और महावीर दोनों की समकालिक अस्तित्व और हेमचन्द्र द्वारा प्रस्तुत अधिक विश्वस्त ऐतिहासिक तथ्य ।
दोनों महापुरुष समकालिक और प्रतिस्पर्धा साधू-समुदायों के स्थापक थे। यह अब एक सिद्ध तथ्य है। परन्तु यदि हम जैन दंतकथा को सत्य मान लें जो कि कहती है कि महावीर का निर्वाण विक्रम पूर्व 470 वर्षे यानि ई. पूर्व 527 में हुआ था तो हमें ऐसी शंका होती है कि ऐसा सम्भव है भी या नहीं क्योंकि बुद्ध का निर्वाण, जिसकी तिथि पहले ही मेरी दृष्टि में ठीक ही, जनरल कनिधम और प्रो. मैक्षमूलर निर्णय ने की थी, ई. पूर्व 477 में हुमा। और सब प्राधार यह कहने में एक मत हैं कि बुद्ध उस समय 80 वर्ष के थे, तो फिर उनका जन्म ई. पूर्व 557 में होना चाहिए। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि महावीर का निर्वाण ई. पूर्व 527 में हुअा हो तो बुद्ध उस समय 30 वर्ष के थे और उन्हें 36 वर्ष की आयु में याने ई. पूर्व 521 पहले न तो बुद्धत्व प्राप्त हुआ था और न उनने कोई शिष्य ही बनाए थे इसलिए यह एक दम असम्भव बात है कि बुद्ध महावीर से कभी मिले ही नहीं हों। फिर दोनों ही अजातशत्रु जो बुद्ध निर्वाण के 8 वर्ष पूर्व ही राजा हुआ था और जिसने 32वर्ष राज्य किया था, के राज्यकाल में थे, यह भी प्रमाणित है। इसलिए ऊपर कही गई तिथियां मानना और असम्भव हो जाता है।
हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व में दिए प्रमाणों का विचार करते हए डा. णाटियर कहता है कि 'हेमचन्द्र के विक्रम संवत् और चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में बताए गए 255 वर्ष के अन्तर को हम डा. याकोबी के साथ ठीक
1. नि:संदेह अन्य विद्वान भी हैं जो इससे विरोधी मतवाले हैं, परन्तु उनके विचारों की याकोबी और शार्पोटयर के विवेचनों ने कालव्यतीत कर दिया है। इसलिए यहां पर फिर से उनका विचार करना अनुपयोगी है। इन विद्वानों में से कुछ के नामों का संकेतमात्र कर देना ही पर्याप्त है:- बयेस, इण्डि. एण्टी., पुस्त. 2, पृ. 140; राइस, त्यइस, इण्डि. एण्टी., पुस्त. 3 पृ. 157; टामस (एड्वर्ड), इण्डि. एण्टी., पुस्त. 8, पृ. 30, पाठक, इण्डि. एण्टी., पुस्त. 12, प. 21%; हरनोले; 'इण्डि. एण्टी., पूस्त. 20, प. 360%; गेरीनोट, बिब्लोग्राफी जैना, प्रस्ता . प. 7 ।
टियर. वही.प. 1251 न केवल वर्ष की संख्या 155 जो गाथा में नन्दों का राज्यकाल की दी गई है, अत्यधिक हैं अपितु अवंती के राजा पालक के राज्यकाल का, मगध राजाओं के राज्यकाल में, वर्णन ही इस काल गणना को बहुत संशयास्पद कर देता है।' याकोबी, वही, प. 8। 3. शार्पटियर, वही, प. 131-1321' निर्वाण तिथि के हमारे विवेचन को फिर से विचार तो स्पष्ट है कि ई. पूर्व 467 जो हमने हेमचन्द्र उल्लिखित कालगणना के आधार पर निर्णय किया है, अधिक अशुद्ध नहीं लगता है क्योंकि यह बुद्ध निर्वाण की संशोधित तिथि ई. पूर्व से समकालिकता दृष्टि से इतनी अच्छी तरह मेल खा जाती है कि जो हम पूर्व शोधों द्वारा मावश्यक प्रमाणित कर चुके हैं।' याकोबी, वही. पृ. 9।
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