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का मूल यद्यपि किसी भी स्थान में स्पष्ट रूप से नहीं मिलता है, परन्तु फिर भी ये अनेक टीका ग्रन्थों और प्राचीन जैन कालगणना ग्रन्थों में उद्धत हई देखी जाती हैं। इनमें वीर और विक्रम संवत के बीच का अन्तर बताया गया है और प्राचीन जैन कालगणना के लिए इन्हें आधारभूत माना गया है। मेरुतुग की विचार श्रेणी इन्ही गाथानों पर आधारित है। इनमें वीर निर्वाण और विक्रमादित्य के राज्यारोहगा के बीच में 470 वर्ष का अन्तर कहा गया है।
इन तीन गाथानों का भाषान्तर इस प्रकार है'-(1) जिस रात्रि में तीर्थंकर महावीर देव ने निर्वाण प्राप्त किया, उसी रात्रि में अवंति के राजा पालक का राज्याभिषेक हुमा। (2) राजा पालक के 60 (वर्ष), नंदों के 155 (वर्ष), मौर्यों के 108 और पुष्पमित्र (पुष्यमित्र) के 30; (3) बलमित्र और भानुमित्र ने 60 (वर्ष) राज्य किया, नमोवाहन ने 40 और उसी प्रकार गर्द मिल्ल का राज्यकाल 13 वर्ष चला और 4 शक का वर्ण है।
इस प्रकार मेरुतुग की गणनानुसार विक्रमादित्य के युग और महावीर के समय में 470 वर्ष का अन्तर है और इसलिए निर्वाण ई. पूर्व 527 के अनुसार है । मेरुतुग की गणनानुसार यह अन्तर 470 वर्ष मान लें तो विक्रम संवत् के प्रारम्भ और मौर्यों के राज्य में 255 वर्ष का अन्तर पाता है और इससे चन्द्रगुप्त के अभिषेक का
मान्यतानुसार, ई. पूर्ण 312 (255+57) आता है । क्योंकि वि. सं. ई. पूर्व. 57 में शुरू हुआ था 18 अब 470 में से 255 घटावें तो चन्द्रगुप्त का समय और निर्वाण का अन्तर 215 प्राता है । इन 215 वर्षों के विषय में सब एक मत नहीं हैं क्योंकि हेगचन्द्राचार्य अपने परिशिष्टपर्ण में लिखता है कि "और इस प्रकार महावीर के निर्वाण के 155 वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त राजा हया था। इसवी सन पूर्व 312 में 155 वर्ष जोड़ने पर महावीर निर्वाण की तिथि ई. पूर्व 460 पाती है। यह सही है कि मेरुतुग भी हेमचन्द्राचार्य के इस कथन का उल्लेख करता है, परन्तु साथ ही कहता है कि ग्रन्थों में इसका विरोध किया गया है इससे अधिक वह कुछ भी नहीं कहता है।'
डा. याकोबी और डा. शापंटियर दोनों जैन विद्वानों ने महावीर की निर्वाण तिथि इन दोनों जैनाचार्यों के दिए प्रमाणों के आधार से निश्चित की है । दोनों ने इतनीप्रधिक सूक्ष्मता और ऐतिहासिक सत्यता से अपने अनुमानों को प्रस्तुत किया है कि उनके अभिप्राय को फिर से सिद्ध करने के लिए उस विवरण में फिर से
1. व्हलर, इण्डि. एण्टी., पुस्तक 2, पृ. 363 । 2. 'मेरुतं ग, सुप्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार, ने वि. सं. 1361-ई.1304 में अपना ग्रन्थ 'प्रबन्ध-चितामणि' और उसके दो वर्ष पश्चात् अपना 'विचारश्रेणी' ग्रंथ रचा था...।' -शाटियर, इण्डि. एण्टी., पुस्तक 4, पृ. 119 1 3. 'ये गाथाएँ मेरुतं ग द्वारा ही अथवा उसके किसी समकालिक द्वारा ही नहीं रची गई थी, यह सुनिश्चित है क्योंकि उस समय तक जैन लेखक बहुत पहले से ही प्राकृत में रचना करना त्याग चुके थे।' -शार्पेटियर, वही, पृ 120 । 4. जरयरिंग कालगनो...सगस्सचक...। विचारश्रेणी, प. 1, हस्तपोथी. भा. प्रा. म. पुस्तकालय, सूची 18711872 सं. 378 15. विक्रम संवत् और ईसाई युग के प्रारम्भ के बीच में 57 वर्ष बीत चुके थे। 6. एवं च श्री महावीर...चन्द्रगुप्तो भवन्नपः । याकोबी, परिशिष्टपर्वन, मर्ग 8 श्लो. 339 । 7. तच्चिन्त्यम् यत एवं 60 वर्षाणि तुट्यन्ति ।। अन्य ग्रन्थः सहविरोधः । विचारश्रेणी, वही, पृ. 1।
8. याकोबी कल्पसूत्र, प्रस्तावना, पृ. 6-10 । . .9. शाऐंटियर, वही, पृ. 118-123, 125-133, 167-178 ।
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