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________________ 30 ] विदेह की राजधानी मिथिला और आवस्ती उनका भ्रमण बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में हुआ था ऐसा प्रतीत होता है । प्रसंगवश वे मगध की राजधानी राजगृह घोर अन्य नगरों में पधारते थे जहां उनको पूर्व मान मिला करता था । " फिर उनके ही समय में जैनों में मतभेद हो जाने पर भी, जैनों की मान्यतानुसार, उनके अनुयायियों की संख्या उनकी प्रतिष्ठा को जरा भी ठेस पहुंचाने वाली नहीं थी । उनके संघ में 14000 श्रमण, 36000 श्रमणियां, 159000 श्रावक प्रौर 318000 श्राविकाएं थी। इसके अतिरिक्त 5400 अन्य शिष्य थे जो या तो श्रुतकेवली चौदहपूत्रों के माता थे या केवली. मनः पर्याय ज्ञानी प्रवधिज्ञानी यादि-आदि थे। 8 1 में हुए थे। । महावीर निर्वाण समय: । पारसनाथ पहाड़ी के निकट की ऋजुपालिका नदी पर के शूमिका गांव में बयालीस वर्ष की उम्र में केवली होने और जैनधर्म के सुधारक के रूप में 30 वर्ष तक भ्रमण करने के पश्चात् महवीर राजगृह निकटस्थ में हस्तिलाल राजा की रज्जुवशाला में 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुए आज भी जैन यात्री हजारों की संख्या में उस स्थान की यात्रा करते हैं जैन काल गणनानुसार यह प्रसंग ई. पूर्ण 527 में अथवा सिंहल गणनानुसार बौद्ध निर्वारण यदि ई. पूर्ण 5437 मानें तो उससे सोलहवें वर्ष में बना माना जाता है । यह संवत् अनेक कालगणना पुस्तकों और टीकाग्रन्थों में पुनरावर्तित तीन गाथानों पर ही अवलम्बित है । ' । इन गाथाओं 1. 'धावस्ती जिसको सहेत महेत भी कहते हैं जैनों की चन्द्रिकापुरी या चन्द्रपुर है। यहां तीसरे तीर्थकर संभवनाथ जी का धौर आठवें श्री चन्द्रप्रभुजी का जन्म हुआ कहा जाता है।' वही पू. 190 | उस काल में, उस समय में श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम चातुर्मास अस्थिकग्राम में तीन चातुर्मास चंपा और पृष्ठचंपा में, बारह वैशाली और वाणिज्यग्राम में चीदह राजगृह और नालंदा के उपनगर में... एक धावस्ती में और एक पावानगरी में राजा हस्तिपाल की रज्जुगशाला ( लेखकशाला ) में किया था।' याकोबी, वही, पृ. 264 " T 2. शार्पेटियर, वही और वही पृष्ठ अंग राज्यों याने आधुनिक प्रवध एवम् हुग्रा है ।' व्हूलर, वही, पृ. 20 । 'उनक प्रभावक्षेत्र का विस्तार बावस्ती या कोसल, विदेह मगध मौर पश्चिमी बंगाल के बिहार और तिरहुत प्रदेशों की परिसीमाओं से मिलता 3. याकोबी, वही, पु. 267-268 4. इसे जृमिक या मिला भी कहते हैं । - स्टीवन्सन (श्रीमती), वही, पृ. 38 5. महावीर 30 वर्ष तक गृहवासी, 2 वर्ष से कुछ अधिक छद्मस्थ और कुछ न्यून 30 वर्ष केवली याने 42 वर्ष साधू रूप में रहे थे।'वाकोवी, वही, पृ. 269 Jain Education International 6. पापा-पावापुरी, बिहारनगर के दक्षिण-पूर्व में लगभग 7 मील गिरियेक के उत्तर में दो मील पर है।' स्टीवन्सन पादरी के कल्पसूत्रानुसार, महावीर का निर्वारण यहां पर उस समय हुआ जबकि पापा के राजा हस्तिपाल के महल में वे पपरता व्यतीत कर रहे थे। उनके निर्वाण स्थली पर एक बाड़े में चार सुन्दर जैन मन्दिर हैं। दीवाली (दीपावली) का वार्षिक पर्व महावीर के निर्धारण की स्मृति में ही प्रचलित हुआ था। देखो दे, वही. पृ. 148 ! 7. देखो याकोबी, कल्पसूत्र, प्रस्तावना पृ. 8 । 8. जिनमें ये घोषणाएं मिलती हैं, वे प्रमाण कोई भी हेमचन्द्र का है जिसका देहांत ई. 1172 में हुआ था। । 12 वीं सदी ईसवी से प्राचीन नहीं हैं। पूर्वतम प्रमाण व्हूलर, वही, पृ. 23 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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