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________________ [ 29 से सामान्य नियम यह हुआ कि साधू को एक वस्त्र से काम चला लेने का प्रयत्न करना चाहिए और उससे न चले सकने पर वह दो वस्तु भी रख सकता है । ' इस प्रकार स्वतः स्वीकृत तप और ध्यान में बिताए बारह वर्ष उनके निष्फल नहीं गए थे ... एक प्राचीन मन्दिर के अनति दूरे... शालवृक्ष के नीचे गूढ़ ध्यानस्थ महावीर को सर्व श्रेष्ठ अनन्त, सर्वोत्तम, अबाधित, प्राविच्छिन्न, परिपूर्ण और समग्र है, प्राप्त हो गया । " 2 महावीर का दीर्घ बिहार: इस प्रकार प्राथमिक आत्म-पीड़न के बारह वर्षों में महावीर बहुत से स्थानों में जाते रहे थे जिनमें से अनेक पहचानना धाज अत्यन्त कठिन है। जंगली जातियों से बसे देशों में भ्रमण करते, कहीं रात्रि के विश्राम के लिए स्थान भी कभी-कभी ही पाते और लाढ़ नामक जंगली लोगों से बसे प्रदेश में भी भ्रमता करते उन्हें निर्दय वर्णर लोगों द्वारा बहुत ही दुःखद और भयानक परिषह सहन करने पड़े थे । परन्तु इस घोर साधनावस्था की समाप्ति के बाद वे सर्वज्ञ, सर्व विषय-ज्ञाता, केवली और इस जगत में जिसके जानने का कोई भी गुप्त नहीं हो ऐसे अर्हत् रूप में प्रसिद्ध और मान्य हुए 14 इस समय उनकी आयु 42 वर्ष की हो चुकी थी और जीवन के शेष 30 वर्ष उनने अपनी धर्म प्रणाली को सिखाने, साधुधों को संघ में व्यवस्थित करने पर भ्रमण द्वारा अपने सिद्धान्तों के 3 चार एवम् स्वधर्ममार्गा बनाने में बिताएं थे । मगध और अंग देश के के लगभग सभी नगरों में उनने भ्रमण किया था। परन्तु प्रमुखतया वे नेक चतुर्मास उनकी जन्मभूमि वंशाली मगध की प्राचीन राजधानी "तेहरवें वर्ष में केवलज्ञान जो कि राज्यों में आए हुए उत्तर और दक्षिण बिहार मगध और अंग राज्यों में ही रहे थे । उनके राजगृह, प्राचीन अंग की राजधानी चंपा, 1. याकोबी, सेबुई, पुस्तक 22, पृ. 157 "जैनों के वस्त्र सम्बन्धी ग्राचार इतने सरल नहीं है क्योंकि साधु का प्रवेल या एक दो और तीन वस्त्र तक रखने की भी प्राज्ञा दी गई है। परन्तु युवक सशक्त साधू को नियमतः एक वस्त्र हो रखना चाहिए। महावीर नग्न ही रहे थे और वैसे ही जिनकल्पिक भी या वे जो महावीर का cereaय धनुकरण करने के प्रयत्नशील थे नग्न रहते थे परन्तु उन्हें भी अपनी नग्नता को प्राच्छादित करने की प्राज्ञा थी वही प्रस्तावना पू. 26 1 " ―― 2. वही, पृ. 263 देखो वही पृ. 201 1 3. देखो शार्पेटियर, वही, पृ. 158; राधाकृष्णन, वही, पृ. 280 "महावीर बारह वर्ष से कुछ अधिक काल तक लाड़, वजभूमि और शुभभूमि में और बंगाल में आज के राढ़ प्रदेश में भ्रमण करते रहे थे। दे, दी ज्योग्रॉफिकल डिक्षनेरी प्राफ एसेंट एण्ड मैडीवल इण्डिया. पृ. 108 डॉ. व्हूलर के प्रनुसार बंगाल में आज का राढ़ प्रदेश | देखो व्हूलर, इण्डियन स्यैक्ट ग्राफ दी जैनाज | पू 261 4. देखो याकोबी, वही, पृ. 263 264 Jain Education International 5. कुण्डग्राम के नाम से बंगाली नगर शीश जैन तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि कहा जाता है और इसी से वे साली अर्थात् वैशाली के निवासी भी कहे जाते थे। दे, वही, पृ. 107 1 6. चंपा जैनों का एक पवित्र स्थान है । इसमें महावीर ने अपने भ्रमण काल में तीन वर्षाऋतुओं से वासावास किया था । फिर यह नगर जैनों के बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपुण्य की जन्म और निर्वाण भूमि भी कही जाती है । देखो, वही, पृ. 44 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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