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________________ 27 ] सन्तु उसकी माता की ओर से राज्य सम्बन्धी लाभ और महत्ता प्राप्त कराने और अपने क्षत्रिय सम्बन्धियों का उन्हें प्राश्रय प्राप्त कराने के लालच से उन्हें त्रिशला की कोख से जन्मा प्रसिद्ध कर दिया गया था। एक महान बर्मवीर के जीवन के ऐसे प्रसंगों पर से काल्पनिक अनुमान घड़ निकालने में हमें कोई भी सार्थकता नहीं दीखती हैं। फिर भी उस काल का विचार करते हुए जैनसूत्रों के इस वर्णन का इतना अर्थ तो हो ही सकता है कि तोर्थकर के अतिरिक्त ब्याह्मण सभी कुछ हो सकता है। इस प्रकार पटना के उत्तर लगभग 20 मील पर स्थित वैशाली के पास के गांव में त्रिशला माता से महावीर का जन्म हुआ कहा जाता है। इनके पिता कुण्डग्राम गांव के परदार थे ऐसा कहा गया है और उनकी माता त्रिशला विदेह की राजधानी वैशाली के सरदार की भगिनी एवम् मंगध के राजा बिवमार की संबंधी थी। नन्दिवर्धन उनका बड़ा भाई और सुदर्शना उनकी बड़ी बहन थी। उनका विवाह यशोदा नाम की कोडिन्य गोत्र की कन्या से हुआ था। इ. यशोदा से उन्हें एक पुत्री उत्पन्न हुई थी जिमका नाम अरणोज्जा था और उसे प्रियदर्शना भी कहा जाता था। उसका विवाह उनके भानेज राजपुत्र जामाली के साथ किया गया था कि जो अपने श्वसुर का शिष्य और जैनधर्म में प्रथम मतभेद प्रवर्तक याने निन्हब हुना था । महावीर तीस वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे थे और माता-पिता का देहान्त पश्चात् अपने बड़े भाई की अनुमति से उनने गृहत्याग कर अध्यात्मिक जीवन में प्रवेश किया था। "यह जीवन पश्चिमी देशों की भांति ही भारत में भी महत्वाकांक्षी लघुपुत्रों के लिए सुन्दर माना गया होना चाहिए।" महावीर के पिता माता पार्श्व पत्य थे: जैन मान्यतानुसार महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ के पूजक और श्रमणों के अनुयायी थे। महावीर के सिद्धान्तों को जैनसूत्रों में उनके निज के सिद्धान्त नहीं कहा गया है । परन्तु "पण्णत्ता' अर्थात् स्थापित सनातन 1. देखो याकोबी, सेबुई, पुस्तक 22. प्रस्तावना पृ. 31 । 2. मुजफ्फरपुर जिले के हाजीपुर उपविभाग स्थित अाधुनिक वसाद को ही वैशाली कहा जाता है । 3. वैशाली के ठीक बाहर ही कुण्डग्राम का उपपुर था जो अाज का कदाचित् वसुकुण्ड गांव ही हो, और यहां ज्ञात्रिक क्षत्रियों के वंश का सिद्धार्थ नाम का धनिक नायक रहता था। कै. हि. ई. भाग 1, पृ. 150 । 4. देखो फ्रेजर, वही. प. 128-131 । जैनसूत्रों के अनुसार त्रिशला को विदेहदत्ता और प्रियकारिणी भी कहा जाता था और यही कारण है कि महावीर भी विदेहदत्ता के पुत्र कहे जाते थे। देखो याकोबी, वही, पृ. 193, 194, 256 । 5. राजा समरवीरो थे यशोदां कन्यका निजाम् । प्रदातं वर्धमानाय... षतु यशोदाया मजायत ।...दुहिता प्रियदर्शना ।। हेमचन्द्र, त्रिषष्ठि-श्लाका, पर्व 10, श्लो. 125, 154, पृ 16 । 6. शाटियर, कै. हि. ई., भाग 1 पृ. 158 । राजपुत्रो...। जमालिः ...प्रियदर्शनाम् ॥ हेमचन्द्र, वही, श्लोक 155, पृ. 17। 7. समा भगवं महावीरे...तीसं वासाइं कट्ट ...विदेहसि मुडे भवित्ता, आदि । कल्पसूत्र, सुबोधिका-टीका, पृ. 89, 96। 8. राधाकृष्णन, वही, भाग । पृ. 287।। 9. महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिग्जा...अादि । प्राचारांग, श्रत स्कंध 2, सत्र 187 प. 422 । देखो याकोबी, वही, पृ. 194 । उसके माता-पिता परम्परा के अनुसार जो कि विश्वस्त ही प्रतीत होती है, पूर्व तीर्थकर पार्श्व के ही अनुयायी थे। जैसा कि पहले ही निर्देश किया जा चुका है महावीर का सिद्धान्त पार्श्व के सिद्धान्त का पुनर्नवीकृत या संशोधित संस्करण के सिवा और कुछ भी नहीं था । शापें टेयर, वही, पृ. 160 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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