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________________ [ 19 कौसल, और विदेह भी सब अस्तित्व में नहीं थे। इसी काल में आर्य गंगा घाटी से बाहर निकल पाए थे प्रोर भारत के धुर दक्षिण प्रदेशों तक में उनने हिन्दू राज्यों की स्थापना कर ली थी और अपने इन नए राज्यों में ज्वलंत सायं संस्कृति का प्रचार भी कर दिया था। ब्राह्मणों का बढ़ता प्रभाव और जातिवाद के विशेषाधिकार: यही समय भारत में धर्मो के उत्कर्ष के लिए भी प्रसिद्ध है। चौदह सदियों से जिस प्राचीन धर्म का आर्य लोग पालन और प्रचार करते आ रहे थे, वह विविध रूपों में विकृत हो गया था । एक भारी परिवर्तन का प्रारम्भ अब भारत को देखना बचा था। देश को हिन्दू धर्म में, चाहे वह भले के लिए हो अथवा बुरे के लिए ही पर, भारी क्रांति का सामना करना पड़ा। धर्म के सच्चे स्वरूप का स्थान दिखावे लोकिकता ने ले लिया था। उत्कृष्टतम सामाजिक और नैतिक नियम अस्वास्थ्यकर जातिभेद, ब्राह्मण एकाति अधिकार और शूद्रों के प्रति क्रूर विधान से कलंकित कर दिए गए थे परन्तु ऐसे एकाधिकृत प्रत्याधिकारों ने भी ब्राह्मणों का सुधार करने में सहयाता नहीं की । एक जाति रूप में वे इतने लोभी, इतने लालची, इतने अज्ञान और इतने दम्भी बन गए थे कि स्वयम् ग्राह्मण सूत्रकारों तक को भी प्रति कठोर शब्दों में उनकी इस बुराई की निंदा करना आवश्यक हो पड़ा था । 2 हिन्दुओं में गुरू संस्था का प्रवेश पीछे से हुआ है यह तो निर्विवाद हैं। ऋग्वेद' में जो कि प्रार्य-संस्कृति का प्राचीनतम ग्रन्थ है, ब्राह्मण शब्द यद्यपि प्रयुक्त तो हुआ है परन्तु 'धार्मिक गीतों का गाने वाला' के अर्थ में ही वह प्रयोग है। पर अब वे धार्मिक क्रियाकाण्ड कराने वाले पुरोहित के रूप में परिचय पाने लगे थे, और जैसे समय बीतता गया वैसे ही इस कार्य का अधिकार वंश परम्परागत होता गया एवं ब्रह्मण शनैः शनैः उच्च से उच्चतम मान प्राप्त करते गए फल यह हुआ कि ब्राह्मणों का दम्भ खूब ही बढ़ गया । इनकी जाति फिर भी एकाधिकृत नहीं बन पाई थी । ईरानियों से पृथक होने के समय से उस सिंधु नदी के मुहाने के निकटस्थ सप्त नदियों के प्रदेश से जहां कि आर्यगण प्रारम्भ में बसे थे, आगे बढ़ने के समय तक तो आर्यों की स्थिति यही थी। " परन्तु इस सप्तनदियों के प्रदेश से दक्षिण-पूर्व के प्रदेशों की ओर प्रयाग और गंगा-यमुना नदियों के तटीय प्रदेशों में हिन्दू-प्रार्यो के बस जाने से वैदिक धर्म ने ब्राह्मण धर्म या ब्राह्मणों के धर्माधीशतंत्र को जन्म दे ही दिया । 7 1. दत्त, वही, पृ. 340 2. वही, पृ. 341; और देखो - (ब्राह्मण) जो न तो वेद और न यज्ञाग्नि ही रखते हैं, वे शुद्र समान हैं। विशिष्ठ अध्या. 3, श्लो. 1 gear. 14, q. 16 1 पुस्त. पृ. 3. ग्रिफिथ दी हिम्स ग्राफ दी ऋग्वेद भाग 2. पु. 96 आदि (2व संस्करण) । 4. देखो टीले, आउटलाइन्स ग्राफ दी हिस्ट्री आफ रिलीजन पृ. 115 | 5. कालान्तर में पुरोहित का राजा के साथ सम्बन्ध स्थायी होता जाने लगा और संभवतया वह पैत्रिक हो गया देखो लाहान नाथ, एंजेंट इण्डियन पोलिटी, पृ. 44 1 6. ब्रह्मर्षि देश और सप्तनद की भूमि में ग्रार्यों के आदि संस्थानों के सम्बन्धों का निर्णय करना इतना सहज नहीं है । के. हि. ई, भाग 1, पृ. 51 7. देखो टीले, वही, पृ. 112, 117 ऋग्वेद की भाषा, वैदिक संस्कृति का प्राचीनतम रूप सप्तनद देश की है । ब्राह्मणों की और उपरि यमुना और गंगा के देश (ब्रह्मविदेश) की उत्तरकालीन वैदिक साहित्य की भाषा संक्रमण काल की है। के. हि. ई. भाग 1, पृ.57 " Jain Education International पढते और पढ़ाते हैं देखो कूलर से.. ई. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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