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की समाप्ति उक्त कालाससियत के 'अनिवार्य प्रतिक्रमण सहित चार व्रतों के स्थान में पांच व्रत पहा कर साथ रहने की प्राशा मांगने में हुई है। शीलांक की प्राचारांग टीका में भी श्री पार्श्वनाथ के अनुयायियों के चतुर्याम और श्री महावीर के तीर्थ के पंचयाम धर्म में इतना हो अन्तर बताया गया है। 2
उत्तराध्ययनसूप में भी इसी बात की पुनरावृत्ति की गई है। दास गुप्ता के शब्दों में उत्तराध्ययन की यह कथा कि पार्श्वनाथ का एक शिष्य महावीर के एक शिष्य को मिला और दोनों ने महावीर प्रवर्तित धर्म पौर पार्श्वनाथ के प्राचीन धर्म का समन्वय किया, यह सूचित करती है कि पार्श्वनाथ सम्भवतः एक ऐतिहासिक पुरुष थे । '3
जैन धर्म की प्राचीनता और आधुनिक विद्वान:
आधुनिक विद्वानों में भी, यदि हम पता लगाएं तो, पार्श्वनाथ के जीवन की ऐतिहासिकता के विषय में सर्वमान्य एकता है । संस्कृत के पुराने पाश्चात्य विद्वानों में से फोलबुक, स्टीवन्सन एडवर्ड टामस तो निश्चयपूर्वक मानते ही थे कि जैनधर्म नातपुत्त घोर शाक्यपुत से भी प्राचीन है कोलबुक कहता है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के स्थापक थे। ऐसा मैं मानता हूं और महावीर एवं उनके शिष्य सुधर्मा ने उस जैनधर्म का पुनरुद्धार कर उसे सुता से सुव्यवस्थित किया था महावीर और उनके पुरोगामी पार्श्वनाथ दोनों को सुधर्मी या उसके अनुयायी तीर्थकर के रूप में पूजते थे और आज के जैन भी उसी प्रकार उन्हें पूजते हैं ।
जैसे कितने ही जरमन विद्वानों ने एच. एच. विल्सन 10.
दूसरी पोर डा. स्वर" और डा. याकोबी लेखन आदि द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों का किया है। डा. याकोबी कहता है कि 'महावीर द्वारा सुधार किए पूर्वके जैनधर्म की कितनी ही बातें इतनी धिक स्पष्ट है कि वे विश्वस्त साधारों से ली गई हैं ऐसा माने सिवाय चल ही नहीं सकता है। इसलिए हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचना ही चाहिए कि महावीर के पूर्व निग्रन्थि अस्तित्व में थे । इस निष्कर्ष को आगे आनुषंगिक प्रमाणों से और भी स्पष्ट करूंगा
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जो
1, अभी के समय का विचार करें तो डा. बेल्बेलकर डा. दासगुप्ता 14 और डॉ राधाकृष्णन ' कि भारतीय तत्वज्ञान के तीन महालेखक हैं और डा. शार्पेटियर 10 गेरीनोट मजुमदार, फेजर ",
1. एसे कालास वेसियपत्ते अणगारे मेरे भगवंतो बंद नमंसह 2 (ता) एवं वदासी- इच्छामि मंते । तुम...। देखो भगवतीसूत्र, सूत्र 76 शतक 1 देखो व्येवर केग्मेंट डेर भगवती, पृ. 185
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2. स एव चतुर्यामभेदाच्चतुर्या प्रादि । देखो आचारांगसूत्र श्रुत स्कंध 2, गाया 12 - 13, पृ. 320
3. दासगुप्ता, हिस्ट्री ग्राफ इण्डियन फिलोसोफी भाग 1. पृ. 169 देखो तो केसि युवन्तं तु गोमो इरावी... ऋत उध्ययनसूत्र अध्ययन 23 गाया 25
4. कोलबुक, वही, पुस्त 2, पृ. 3171 5. स्टीवन्सन (पादरी), वही, और वही पृष्ठ |
6. टामस (एड्वर्ड), वही, पृ. 6 1 7. कोलबुक वही, और वही पृष्ठ ।
12. art, gfog. yazt., gea 14. दासगुप्ता, वही, पृ. 173 1 16 शार्पेटियर, कै. हि. इं., भाग 18. मजुमदार वही पु. 292 आदि
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8. कूलर दी इंडियन स्पेक्ट ग्राफ दो जेनाज, पू. 32 व्हूलर,
10. विल्सन, वही. भाग 1. पृ. 334 1 11. लेसन, इण्डि एण्टी पुस्त 2. पू. 197
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9, q. 160 1 पृ. 15. राधाकृष्णन, वही, पृ. 281 । 1, पृ. 153
9. याकोबी, से. बु.ई., पुस्त. 45 प्रस्ता. पृ. 2 1
13 वेल्वलकर, दी ब्रह्मसूत्राज पृ. 106
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17. गेरीनोट, बिब्लीयोग्राफी जेना, प्रस्ता पृ. 8 । 19. केजर, लिट्टेरी हिस्ट्री आफ इंडिया, पृ. 128 1
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