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जैन धर्म का उद्भव और प्रर्वाचीन खोजों की अपेक्षा अधिक प्राचीन होने के प्रमाण जैनों की मान्यतानुसार अनेक तीर्थकरों ने जगत के प्रत्येक युग में वारम्वार जैन धर्म का उद्योत किया था। वर्तमान युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और अन्तिम दो पार्श्वनाथ एवम् महावीर थे। इन तीर्थंकारों के जीवन चरित्र जनसिद्धान्तपुस्तकान्तर्गत एवम् अनेक महान जैनाचार्यों द्वारा लिखित चरित विशेषों में सम्पूर्ण रूप से प्राप्त है । इन तीर्थकरों में ऋषभदेव का शरीर 500 धनुष्य का और प्रायु 84,00,000 वर्ष पूर्व की कही गई है जब कि अन्तिम दो याने पार्श्वनाथ और महावीर का आयु अनुक्रम से 100 और 72 वर्ष ही था और शरीर भी ग्राजकल के से मनुष्यों मा ही लम्बा था । इन तीर्थकरों की म्रायु और देह का तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हमें ज्ञात होता है कि ऋषभदेव से प्रायुष्य और देहमान बराबर उत्तरोत्तर घट ही प्रा रहे थे। पार्श्व के पूर्वज बाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथ का आयुष्य 1000 वर्ष का ही कहा जाता है । 1 ग्रन्तिम दो तीर्थकरों के दिए गए बुद्धिगम्य आयुष्य और देह ने कितने ही विद्वानों को इस सम्भव परिणाम पर पहुंचने की प्रेरणा दी कि ये ही तीर्थ कर ऐतिहासिक पुरुष मानी जाना चाहिए ।"
पाश्व और महावीर दोनों ऐतिहासिक हैं: पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में लेखन कहता है कि इस जिन का धायु उसके पुरोगामियों की भांति कोई भी मर्यादा उल्लंघन नहीं करता है, इसीलिए उसके ऐतिहासिक पुरुष होते की बात को इसरो विशेष समर्थन मिलता है ।"
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यह
यह सत्य है कि हम ऐसे तर्क के आधार पर किसी भी प्रकार का ऐतिहासिक अनुमान नहीं बांध सकते है, परन्तु भारतीय इतिहास के जिस समय का हम यहाँ विचार कर रहे हैं उसकी सामग्री इतनी अपूर्ण है कि हम उसके आधार पर प्रमाणित निर्णय कुछ नहीं कर सकते हैं। श्री दत्त कहते हैं कि महान् अलेक्जेण्डर के भारत आगमन के पहले के भारतीय इतिहास की निश्चत तिथियों का निर्णय करना लगभग असंभव है।" निःसन्देह एक रहस्य की ही बात है कि जहां महावीर के उद्भव के बाद की प्रत्येक वस्तु का व्यवस्थित लेखा रखा जा सका, वहां उनके पूर्व की किसी भी बात का प्रामाणिक लेखा हमें नहीं मिलता है । फिर भी जैनों के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिक तिथि निश्चित करना एक दम ही असंभव नहीं है। श्री महावीर और बुद्ध के समय का समकालिक साहित्य जैन इतिहास के इस महत्व के प्रश्न पर बहुत सुन्दर प्रकाश डालता है, यही नहीं पर हम यह भी देखते हैं कि जैन सूत्रों में प्रस्तुत किए तत्सम्बन्धी प्रमाण भी कुछ कम महत्व के नहीं हैं ।
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1. हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ प्रतिवानचितामरिण में बीती उत्सर्पिणी के 24 तीर्थंकरों के और आगामी के 24 तीर्थंकरों के नाम दिए हैं । सत्सर्पिण्याविद् आदि और भाविन्यां तु ग्रादि । श्लो. 50-56 इस सूची की समाप्ति इस प्रकार की है एवं सर्वावसपियुत्सपणीषु जिनोत्तमाश्लो. 561 2. सूत्रों में से भद्रबाहु का कल्पसूत्र अथवा सुधर्मा का आवश्यक सूत्र आदि देखो; पृथक चरित्रों की सूची में इनका नाम निर्देश किया जा सकता है - हमविजयगरि का पार्श्वनाथचरित्रम् श्री मुनिभद्रसूरि का शांतिनाथ महाकाव्यम्; विनयचन्द्रसूरि का मल्लिनाथचरित्रम् हरिभद्रसूरि का मल्लिनाथ चरित्रम नेमिचन्द्रसूरि का महावीर स्वामी चरित्रम् ग्राबि आदि । 3. कल्पसूत्र, सूत्र 227, 168, 147 जैन के अनुसार एक पूर्व 7,05,60,00,00,00, 000 वर्ष का होता है । देखो संग्रहणीसूत्र, गाथा 262 4. कल्पसूत्र. सूत्र 182 1 5. स्टीवेन्सन । पादरी । कल्पसूत्र, प्रस्ता. पु. 12 6. लासेनब ई. एण्टी पुस्त. 2. 261
7. दत्त, वही, पृ. 11 1
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