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________________ 148 ] गई । वायव्य प्रांत वाले अाक्रमण करने को मुक्त हो गए और बैक्ट्रिया, पाथिया आदि ग्रीक प्रान्तों एवम् सीमाप्रदेश की युद्ध-तत्पर जातियों के लिए भारतवर्ष असीम लालच का स्थान बन गया। उसके सर्वधर्म समभाव होते हुए भी ब्राह्मण लोग अपने धर्म को भय में देखते थे और इसलिए उसके याने अशोक के प्रति द्वेष रखते थे सम्भव है कि ब्राह्मणों ने अपने स्थापित अधिकारों में से भी अनेक उस काल में खो दिए होंगे। इन्हीं कारणों से मौर्य साम्राज्य के विरूद्ध महान् प्रतिक्रिया प्रारम्भ हई जिसमें ब्राह्मणों ने पहले छुपे-छपे भाग लिया और बाद में अन्तिम मौर्य के समय में उनका खुला विरोध ही हो गया। अशोक के उत्तराधिकारी के पास मात्र मगध और ग्राम पास के प्रदेश ही रह गए थे । अन्तिम मौर्य राजा बृहद्रथ का उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र ने (भारतीय मैकव्येथ ने) नमक हरामी से वध किया । पौराणिक वर्णनों के आधार पर मौर्यवंश 137 वर्ष चला। इसको स्वीकार करते यह कहना होगा कि ई. पूर्व 322 में चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण से ई. पूर्व 185 तक मौर्यवंश का राज्य रहा था । यह समय प्रायः ठीक है। इस प्रकार वह ब्राह्मण वश कि जिसने बौद्ध मौर्य को उखाड़ फेंका था ई. पूर्व 185 में भारतवर्ष में सत्ता में पाया। इस प्रकार ब्राह्मणों के उकसाने से पुष्य या पुष्यमित्र ने नमक हराम हो कर अपने स्वामी का वध किया मन्त्रियों को कैद किया और राज्य का अपहरण कर उसने पापको राजा घोषित कर सुग या मित्रवंश का स्थापन किया जिसका कि राज्य लगभग 110 वर्ष चला और जिसने हिन्दू समाज एवम् साहित्य में प्राचीन विचार परम्परा की क्रान्ति फिर से कर दी । बाणभट्ट ने अपने हर्षचरित में (ई. शती) इस सैनिक अधिकार का उल्लेख इस प्रकार किया है । "अपने मौर्य राजा वृहोद्रथ को कि जो सिंहासनारूढ़ होते समय प्रतिज्ञा को पालन करने में असमर्थ था, सेना बताने के बहाने, सेना का निरीक्षण करते हुए नीच पुष्यमित्र ने कचरधारण निकाल दिया।" इसी बात पर लिखते हुए 'दी हिन्दू हिस्ट्री' ग्रन्थ का लेखक कहता है कि "पुष्यमित्र, जब वृद्ध हो गया था, उत्तर भारत में सार्वभौम राजा की प्रतिष्ठा को प्राप्त हुया था। पाणिनीय व्याकरण के भाष्यकार अपने गुरू पन्तजलि की प्रमुखता और निर्देशन में इस पुष्यमित्र ने एक राजसूय और एक अश्वमेध यज्ञ बड़ी धूमधाम से किया । इस पुष्यमित्र ने हिन्दूधर्म को पुनरजीवित करने की भरसक चेष्टा की । उसके यज्ञ बौद्धों पर ब्राह्मणों की विजय चिन्ह रूप ही थे, बौद्ध ग्रन्थकरों ने पुष्यमित्र को धर्माध और अत्याचारी चित्रित किया है । ऐसा दोष मंढा जाता है कि उसने मगध से लेकर पंजाब के जालंधर तक के बौद्ध विहारों को जला कर भूमि सात कर दिया और भिक्षुत्रों को कत्ल किया। इसमें कुछ सचाई भी हो सकती है। पुष्यमित्र का कहना था कि उसके विरुद्ध जैनों और बौद्धों का पड़यन्त्र व्यापक था ।" उपर्युक्त सब बातों को ध्यान में रखते हुए एक बात स्पष्ट है कि अशोक की अन्यायानुसंधित्सु पद्धति को प्रतिक्रिया न सर्व प्रथम तो बौद्धधर्म पर सांघातिक ग्राघात किया और दूसरे अनेक राजनैतिक कारणों से उत्तर भारत में मौर्य प्राधान्य के भी मरणांत पहुंचा दिया। अशोक ने बौद्ध धर्म के और कुछ अंश में जैन धर्म के प्रति अमीम उदारता बताई उसके परिणाम स्वरूप ब्राह्मणों के विशेष अधिकारों को भारी क्षति पहुंची। फिर ये लोग रक्त-बलि की बंधी और जासमी की उत्तेजक कार्यवाहियों से भी असन्तुष्ट थे । इसलिए ज्यों ही वृद्ध राजा का सुदृढ़ 1. मजुमदार, वही, पृ. 626 । 2. देखो पाजींटर वही पृ. 271 3. बिउप्रा पत्रिका 10. पृ. 202 । 4. यह अनुवाद कोव्यल एवं टामस के (हर्षचरित, पृ. 193) और व्हलर (इं. एण्टी सं. 2, पृ. 363) एवं जायसवाल के अनुवादों को मिला कर दिया गया है । देखो स्मिथ, वही, पृ. 268 टि. 1 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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