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________________ [ 139 यह वाचन और व्याख्या जायसवाल की 'तम खोज के अनुसार है और इसे श्री बैनरजी एवम् डा. कोनोव ने भी प्रामाणिक स्वीकार कर लिया है ।। अत्यन्त प्राधुनिकतम ऐतिहासिक खोजों से हम इतना ही जान सके हैं इसलिए इसे खारवेल के राज्यकाल की एक मात्र की मानकर, हम स्पष्टतया कह सकते हैं कि यवन राजा ने मथुरा पर अधिकार कर लिया था और पूर्व की ओर सम्भवत; साकेत तक भी वह बढ आया था। इसका समर्थन गार्गी-संहिता की सूचना से भी होता है जहाँ यह कहा गया है कि साकेत, पांचाल और मथुरा को जीत कर यवन-राज मौर्य-युग के समाप्ति समय में कुसुम-ध्वज (पाटलीपुत्र) की मोर बढ़ रहा था।" इसी ओर ध्यान आकर्षित करते हुए डा. जायसवाल कहते हैं कि 'जब पतंजलि संस्क्रत व्याकरण पर अपना भाग्य लिख रहा था. मगधराज (पुष्यमित्र) ने एक लम्बा यज्ञ प्रारम्भ किया हुप्रा था और तब तक वह सम्पूर्ण नहीं हुआ था । अयोध्या के नए प्राप्त शिलालेखों के अनुसार उस मगधराज ने दो अश्वमेघ यज्ञ किए थे। जब अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था तभी का पातंजलि का यह उल्लेख है कि यवनराजा ने साकेत और मध्यमिका का घेरा डाला था। कालीदास भी जब कि पुष्यमित्र का अश्वमेव-यज्ञ चल रहा था। उस नदी के निकट की राजा की विजय का उल्लेख करता है जो मध्यमिका राज्य के निकट से होती हुई बहती है। इस प्रकार हमें स्पष्ट साक्षियां प्राप्त हैं कि पुष्यमित्र के राज्यकाल में यवनों का असफल आक्रमण हुआ था। खारवेल के इस लेख में ऐसे ही समसामयिक यवन-पाक्रामक का उल्लेख है कि जिसको न केवल पीछा हट जाना ही पड़ा था अपितु मथुरा भी छोड़ देना पड़ा था। यह घटना वहस्पतिमित्र के राज्यकाल में हुई थी कि जो जातियों की साक्षियों से अग्निमित्र का पूर्वज प्रमाणित होता है । इसलिए आपततः यह परिणाम निकलता है कि उक्त आक्रमण वही था जिसका गार्गीसंहिता और पतंजलि दोनों ही ने वर्णन किया है।" परन्तु इस सम्बन्ध में एक दूसरी कठिनाई यह है कि वह ग्रीक राजा डिमेट्रियस या मिनेण्डर ? गार्डनर के अनुसार, मिनेण्डर का समय ई. पूर्व दूसरी सदी का प्रारम्भ, और विसेंट स्मिथ के अनुसार, ई. पूर्व 155 है। फिर मिनेण्डर के इसमोस (यमुना) के लांघने की बात ही नहीं कही जाती है । वह हिपनिस याने व्यास नदी पार कर कुछ आगे तक बढ़ा था इतना ही कहा जाता है। फिर साहित्य का जो अंश डिमोट्रियस और मिनेण्डर दोनों ही को लागू होता है, उसे विद्वानों ने डिमोट्रियस की व्यापक विजयों का संकेतक माना है। इन सब के अतिरिक्त जो हमें यथार्थ व्यक्ति के पहचानने में सहायता करती है। वह है अपने प्रतिस्पर्धी युक्रेटाइडन को दबा देने के लिए डिमेट्रियस के बैक्ट्रिया लौट जाने की बात क्योंकि शिलालेख स्पष्ट ही कहता है कि यवन-राज, 1. वही, सं. 13, पृ. 228 । 2. गार्गी-संहिता के युग-पुराण अध्याय में यह वर्णन है कि 'दुर्दमन वीर यवन' साकेत (अवध में) पांचाल देश (यमूना और गंगा के बीच का देवाब देश) और मथुरा को अधीन कर, पुष्पपुर (पाटलीपुत्र) पहुंचा; परन्तु वे मध्य देश में इसलिए टिके नहीं रहे कि उनके अपने देश में ही प्रापस आपस में घोर युद्ध छिड़ गया था (कर्न, वहत्संहिता, पृ. 37) स्पष्ट ही यह संकेत उस परस्पर विध्वंसी युद्ध की ओर है कि जो यूथाइडिमस और यूक्रेटाइडस के वंशों में चल रहा था। 3. बिउप्रा, पत्रिका, सं 13, पृ. 241. 242 4. देखी गार्डनर, केटे लोग आफ इण्डियन काइन्स, ग्रीक एण्ड सिथिक प्रस्ता.प. 22. 23 । 5. स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ. 239। 6. गार्डनर, वही, प्रस्ता. पृ. 37 । 7. देखो मेयेर (रुअडी), एसाइक्लो ब्रिटेनिका, भाग 7, प. 982 (11 वां संस्करण); और रालिन्सन, पाथिया (दी स्टोरी प्राफ दी नेशन्स माला), पृ. 65 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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