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________________ [ 111 कटियस हमें कहता है कि "गंजादाई और प्रास्सी का राजा अग्राम्मे ने" अपने राज्य संरक्षण के उच्च प्राकारों में 20,000 हयदल, 2,00,000 पैदल, 2,000 चार घोड़ों के रथ, और इसके अतिरिक्त सबसे भयंकर गजसेना भी रखी थी और इसकी संख्या 3,000 तक पहुंच गई थी। इसके सिवा, नन्द साम्राज्य में कोसल का समाविष्ट हो जाना कथासरित्सागर के इस कथन से समथित होता है जहां राजा नन्द को अयोध्या में पड़ाव का उल्लेख किया गया है।' खारवेल का हाथीगुफा का शिलालेख इसका विशेष प्रावश्यक प्रमाण है जो कि, जैसा कि हम पहले देख ही पाए हैं, कलिंग की नहर के सम्बन्ध में नन्दराज का उल्लेख करता है। इस सब का स्वाभाविक अर्थ यह होता है कि नन्दराजा ने कलिंग पर भी अधिकार कर लिया था। डॉ. रायचौधरी के शब्दों में कहें तो "नन्द का कलिंग पर अधिकार देखते हुए, उसकी सुदूर दक्षिण क्षेत्रों की विजय भी एक दम असम्भव सी नहीं मालूम देती है । गोदावरी पर के नगर नांदेड याने नौ-नंद-देहरा' का अस्तित्व भी सूचित करता है कि नन्द के साम्राज्य में दक्खण का भी अधिकांश भाग था।" फिर हम अगले अध्याय में देखेंगे कि शिलालेख का दूसरा वाक्य कलिंग की जिनप्रतिमा और अन्य कोश जो कि नन्द विजय-चिन्ह स्वरूप मगध में ले गया था का उल्लेख करता है। खारवेल के इस शिलालेख से नन्दों का जैनधर्म के साथ सम्बन्ध चर्चा का विषय हो जाता है । इस और अन्य नन्दराज के उल्लेख वाले वाक्यों के सम्बन्ध में जो कठिनाई उपस्थित होती है, वह नन्दराज के बराबर पहचाने जाने की ही है। महावीर के निर्वाण की चर्चा में हमने देखा था कि जायसवाल, बेनरजी, स्मिथ और अन्य जैसा कहते हैं याने नन्दराज को नन्दिवर्धन ही मान लिया जाए ऐसा कोई भी कारण नहीं है। फिर शाटियर के आधार के सिवा जिसका कि पहले विचार किया जा चुका है, और जैसा कि उसके विषय में श्री चन्दा कहते हैं, 'नन्दीवर्धन की सूचना करने वाले एक मात्र हमारे अाधार पुराणों में ऐसी कोई भी बात नहीं है कि जिससे हम कह सकें कि उसको कलिंग में कभी भी कुछ काम पड़ा था । पक्षान्तर में हमें स्पष्ट ही पुराण कहते हैं कि जब मगध में शैशुनाग राज्यवंश और उसके पूर्वज राज कर रहे थे, बत्तीस कलिंग राजा कलिंग पर क्रमश: एक के बाद एक रान करते रहे थे। नन्दिवर्धन नहीं अपितु वह महापद्म नन्द था कि जिसने 'सब को अपनी सत्ता के अधीन किया, था' और सब क्षत्रियों को निर्मूल कर दिया था' याने प्राचीन राजवंशों को मिटा दिया था। इस लिए हाथीगुफा शिलालेख का नन्दराज कि जिसने कलिंग पर अपनी सत्ता जमाई थी, या तो स्वयं महापद्म नन्द माना जाना चाहिए या उसके पुत्रों में से कोई एक ।। संक्षेप में खारवेल के शिलालेख का नन्दराज जैनों का प्रथम नन्द अथवा पुराणों का महापद्म नन्द के सिवा दुसरा कोई नहीं है क्योंकि परवर्ती नन्दों के विषय में जैन और पुराण दन्तकथा दोनों ही ऐसा कुछ भी नहीं कहती हैं कि जिससे उनमें से किसी के लिए भी प्रथम नन्द जैसा विजयी जीवन का दावा किया जा सकता है । यहां 1. मैक्क्रिण्डले, वही, पृ. 221-222 । देखो वही, पृ. 281-282; स्मिथ, वही, पृ. 42; रायचौधरी, वही, पृ.141 । 2. देखो टानी (पंजर संस्करण) कथासरित्सागर, भाग 1, पृ. 27; रायचौधरी, वही और वही स्थान । 3. देखो रेप्सन, वही, पृ. 315। 4. देखो मैकोलिफ, दी सिक्ख रिलीजन, भाग 5, पृ. 236 । 5. रायचौधरी, वही, पृ. 142 ।। 6. देखो पार्जीटर, वही, पृ. 24, 62 । 7. चन्दा, मैमायर्स ग्राफ दी आकियालोजिकल सर्वे ग्राफ इण्डि., पृ. 50 । संख्या 1, पृ. 11-12 । देखो रायचौधरी वही, पृ. 1381 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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