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राजचिन्हों ने उस नन्द का मगध के राजा के रूप में अभिषेक किया। इसलिए उसे प्रधानुसार राजा स्वीकार कर लिया गया और इस प्रकार महावीर निर्वाण के साठ वर्ष पश्चात् नन्द मगध का राजा हुआ।
महावीर निर्वाण तिथि का विचार करते हुए हमने देखा था कि उसके 155 वर्ष बाद मौर्य मगध की राजगद्दी पर पाए थे। इस प्रकार नन्द और उसके वंशजों का राज्यकाल 95 वर्ष रहता है। डॉ. प्रधान कहता है कि "यह पौराणिक दन्तकथा से बिलकुल मेल खा जाता है कि जिसके अनुसार नन्द वंश लगभग 100 वर्ष राज करना पाया जाता है। इससे ऐसा लगता है कि पुराणों ने प्राचीन जैन मान्यता को ही प्रायः स्वीकार कर लिया था।"
यह विद्वान यह भी कहता है कि "नाम-साम्य के कारण हेमचन्द्र नन्दि-(अवर्धन और नन्द (= महापद्म) दोनों को एक ही समझ लेते हैं इतना ही नहीं अपितु इस भ्रामक दन्तकथा का भी समर्थन कर देना है कि नन्द (== महापद्य) ने लगभग 100 वर्ष (स्थविरावनी चरित के अनुसार 95 वर्ष) राज्य किया था।
परन्तु हेमचन्द्र ने नाम का घोटाला ऊपर कहे अनुसार कभी किया ही नहीं था क्योंकि हरिभद्र और हमचन्द्र दोनों ही ने नवनन्दों का विचार किया है जिनमें से प्रथम नन्द को दोनों ही ने वस्तुतः हीनोत्पन्न ही बताया है। ऐसा कहना उचित नहीं है कि "हेमचन्द्र नन्दि-(प्र)-वर्धन और (= महापद्म) नन्द दोनों में भ्रमित हो गए हैं "क्योंकि नन्दिवर्धन या नन्दवर्धन का नामसाम्य यदि स्वीकार किया ही जाता है तो उसे शैशुनाग के वंशज रूप से ही मानना होगा कि जो उदायिन का उत्तराधिकारी हुआ था। यह बात प्राचीन और अर्वाचीन सभी प्रमारणों से समथित होती है। डॉ. रायचौधरी कहता है कि "पुराणों पोर सिंहली पण्डितों ने सिर्फ एक ही नन्दवंश का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनमें नन्दिवर्धन को शैशुनागवंशी राजा बताया है और यह वंश नन्दवंश से एकदम भिन्न है।"
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जैनकथा में जरा भी असंदिग्धता नहीं है क्योंकि उदायिन् का उत्तराधिकारी नहीं था और मगध का राज्य उसके बाद नन्दों के हाथ में हो गया था। शेशुनाग का स्थान नन्दों ने कैसे लिया उन घटनाओं में जाने की हमें कोई भी प्रावश्यकता नहीं है । ऐसा हुअा हो कि उदायिन के परवर्ती राजा निर्वीर्य हुए हों और उस वंश के अन्तिम महानन्दिन को जैसा कि स्मिथ कहते हैं, शूद्रा या हीनवर्णा दासी से उत्पन्न महापद्म नन्द नाम का पुत्र था जिसने राज्यसिंहासन हड़प किया और इस प्रकार नन्दवंश की स्थापना की।
विद्वान ऐतिहासज्ञ का यह कथन इस जैन दन्त कथा के पाय कि नन्द नाई से उत्पन्न वैश्या का पुत्र था, मिलता हरा है। इसका समर्थन पुराग्गों और प्रत्यक्जैण्डर के मगधी समकालिक के पिता विषयक यावनी ग्रिीक) वृत्तों से भी होता है। पुराणों में इसे शूद्र-गर्भ-उद्भव याने शूद्र माता से उत्पन्न कहा है।' इस प्रकार इन पार्ष वृत्तों से जैनकथा का अद्भुत रीति से समर्थन हो जाता है हालांकि उनके अनुपार नन्दों ने सीर्फ पीढ़ियों तक ही
1. नापितदास...राजा जातः । -ग्रावश्यकसूत्र, पृ. 690 1 देखो हेमचन्द्र, वही, श्लो. 231-243 । 2. प्रधान, वही, पृ. 218 । देखो पार्जीटर. वही, पृ. 26, 69 । 3. प्रधान, वही, पृ. 220 । देखो वही. पृ. 225 । 4. ...नवमे नन्दे...। -प्रावश्यकसूत्र. पृ. 693 । देखो हेमचन्द्र वही सर्ग 7, श्लो. 3 ।। 5. रायचौधरी, वही, पृ. 138 । देखो पार्जीटर. वही, पृ. 23, 24 69; स्मिथ. वही, पृ. 5।। 6. वही, पृ41। 7. देखो पार्जीटर वही पृ. 25, 69; रायचौधरी. वही, पृ. 140; प्रधान, वही, पृ. 226;
स्मिथ, वही, पृ. 43; रेप्सन, वही, पृ. 3।।
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