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________________ 98 ] मगध के सत्तावाही विशेष राज्यवंशों का विचार करने के पूर्व जैन इतिहास की दृष्टि से मगध की ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्ता के सम्बन्ध में कुछ कहना यहां अप्रासंगिक नहीं होगा । आज के बिहार प्रान्त के पटना और गया जिलों के ही लगभग समान वह मगध था । उसकी प्राचीन राजधानी गया के पास की राजगिर टेकरियों में भाई गिरिव्रज प्रथा प्राचीन राजगृह श्री यह राजधानी पांच टेकरियों से सुरक्षित होने के कारण अजेय गिनी जाती थी । "उसकी उत्तर में वैमारगिरी और विपुलगिरी (पहली पश्चिम, और दूसरी पूर्व प्रोर), पूर्व में विपुलगिरी और रत्नगिरि या रत्नकूट पश्चिम में वैमारगिरि का चक्र नामक विभाग और रस्ताचल और दक्षिण में उदयगिरि सोनगिरि और गिरिवजगिरि धाए हुए हैं।"" ये सब टेकरियां घाज भी जैन इतिहास में महत्व की हैं। बेमार, विपुल, उदय और सोनगिरी पर महावीर पाखं और धन्य तीर्थकरों के मन्दिर हैं ।" ग्राश्रय आगे हम देखेंगे कि महावीर केवल स्वतन्त्र उपदेशक ही नहीं थे, परन्तु अपने महान् धर्मप्रचार के लिए राज्य का प्रत्यक्ष याय और सहानुभूति पा कर राजगृह और उसके मोहल्ले नालन्दा में उनने चौदह चतुर्मास बिताए थे । * कल्पसूत्र का यह उल्लेख मगध के साथ महावीर के वैयक्तिक सम्यका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । फिर उसमें दी गई स्थविरावली में हम जानते हैं कि उनके ग्यारह गाधर भी अनशन की लम्बी और महान् तपश्चर्या के पश्चात् यहां ही निर्वाण प्राप्त हुए थे।" राज्यवंशों का हम विचार करें। इसका प्रारम्भ हम शैशुनाग पूर्व उस कड़ी की खोज करना भी प्रावश्यक है कि महावीर के सम्बन्ध था या नहीं 'जैन लेखकों ने समुद्रविजय और उसके अब मगध पर राज्य करनेवाले भिन्न भिन्न वंशीय बिसार से ही करेंगे। परन्तु ऐसा करने के पुरोगामी के युग के जैनधर्म और मगध में भी कोई पुत्र जय का राज के गजों के रूप में दर्शन किया है ।" इन में से जय जो कि ग्यारहवां चक्रवती कहा गया है, ने उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार हजारों अन्य राजों के साथ ससार त्याग कर संयम आराधना की थी और अन्त में वह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया था।" जैन इतिवृत्तों की ऐसी ग्रहदिकृत बातों को एक प्रोर रखकर हम ज्ञात ऐतिहासिक एवं अन्य तथ्यों की ही यहां जैन उल्लेखों के साथ परीक्षा करेंगे। शैशुनाग वंशी विवसार के विषय में हम देखते हैं कि जैन ग्रन्थों में इस 1. यह किन्हीं अन्य नामों से भी प्रख्यात हैं। जैसे कि "दी लाइक ग्राफ हुएनसांग में लिखा है कि "राजगृह का प्राचीन नगर वह है जो कि उ-शे-की-ला पोलो (कुशाग्रपुर) कहलाता है। यह नगर मगध के केन्द्र में है और प्राचीन काल में अनेक राजा और महाराजा उसमें निवास करते थे ।" -बील, लाइफ ग्रॉफ हुएनत्मांग, पृ. 113 | देखो कविघम, वही, पृ. 529 भारतीय बौद्ध लेखकों ने इसका एक और भी नाम विसारपुरी' भी दिया है । देखो लाहा, बि. च, बुद्धघोष, पृ. 87, टि. 1; रायचौधरी वही, पृ. 70 | 2. दे, वही. पू. 66 | देखो कनिंघम, वही, पृ. 530 3. वही, पृ. 530-532 4. नालन्दा आज का बारगांव ही था जो कि पटना जिले में राजगिर के उत्तर-पश्चिम में सात मील पर है। इसमें महावीर का एक रमणीय मन्दिर भी है और इसी मन्दिर के स्थान पर ही सम्भवतया महावीर नालन्दा में ग्राकर रहे थे। पक्षान्तर में बुद्ध पावरिका आम्रकुंज में ठहरे थे। दे. वही. पू. 137 1 5 देखो याकोबी, वही पोर वही स्थान 6. वही, पृ. 287 1 7. रायचौधरी, वही, पृ. 72 देखो याकोबी सेबुई पुस्त, 45, पृ. 86 1 8. अनि रायसहस्सेहि सुपरिनचई दमं नरे। जयनामो जिलाक्लायं पत्तो गमणुत्तर। गाथा 43 देखो याकोबी, वही, पृ. 85-87; रायचौधरी, वही और वही स्थान । Jain Education International For Private & Personal Use Only उत्तराध्ययन, प्रध्ययन 18, www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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