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________________ [ 97 भारी सम्मान हुआ था । " दन्तकथा के अनुसार श्रावस्ती अथवा चन्द्रपुरीया चन्द्रिकापुरी जैनों के तीसरे तीर्थकर श्री सम्भवनाथ और आठवें श्री चन्द्रप्रभु की जन्मभूमि कही जाती हैं। प्राज भी वहां शोभानाथ का एक मन्दिर है जो संभवनाथ का अपभ्रंश नाम ही मालूम देता है।" भिन्न भिन्न प्रमाणों से हमें मालूम होता है कि कोसल और शिशुनाग वैवाहिक सम्बन्ध से जुड़े हुए थे। महाकोमल की पुत्री कोमलदेवी महावीर के मुख्य श्राविका चेल्लणा की साथ श्रेणिक की पत्नियों में से एक थी । " फिर कितनी ही बुद्ध दन्तकथाओं से हमें यह सूचना मिलती है कि महाकोसल का पुत्र गिगर या मृगधर सावत्थी के प्रसेनजित का मुख्य श्रमात्य था और वह नास्तिक और निग्रन्थि साधुनों का एक निष्य भक्त था । 2 उपरोक्त सारा विवेचन यह सिद्ध कर देता है कि प्रायः सभी प्रमुख सोलह महाजनपद एक या दूसरी रीति से जैनधर्म के प्रभाव में आ गए थे ।" सोलह महाशक्तियों में से मगध के विषय में अभी तक हमने कुछ भी नहीं विचार किया है। इसका कारण यह नहीं था कि मगध का विचार अन्य महाशक्तियों के साथ ही साथ नहीं किया जा मकता था, परन्तु यह कि प्राचीन भारत का यह प्राक्नार्मन वैस्यैक्स परवर्ती जैन ऐतिहासिक चर्चा का केन्द्र होने का था । डॉ रायचौधरी कहता है कि" सोलह महाजनपदों में से प्रत्येक का समृद्धि समय ई. पूर्व छठी सदी में या उसके लगभग समाप्त हो जाता है । उसके परवर्ती काल का इतिहास इन छोटे जनपदों के अनेक शक्तिशाली साम्राज्यों द्वारा निगल जाने एवम् अन्त में उन साम्राज्यों के भी मगध के महासाम्राज्य में समा जाने का ही है ।" हमें इस विवरण में सीधे उतरने की आवश्यकता नहीं है कि प्राचीन भारत के इस एक महासाम्राज्य" ने ग्राधुनिक जरमनी के इतिहास में प्रशिया जैसा भाग कैसे अदा किया था। हमारा इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि इस साम्राज्य पर जिन भिन्न-भिन्न राज्यवंशों ने राज्य किया वे सब जैनधर्म के साथ कैसा सम्बन्ध रखते थे । शैशुनाग, नंद और मौर्यों से प्रारम्भ कर हम खारवेल के समय तक पहुंचेंगे और देखेंगे कि उत्तरीय जैनों के इतिहास की विशिष्ट मर्यादा बांधने का अद्वितीय मान प्रशोक की भांति ही महामेघवाहन खारवेल के हिस्से में आता है । कल्पसूत्र, सुबोधिका 1. भगवं... सावस्थी...लोगो... वदे । आवश्यकसूत्र, पृ. 221 टीका, पृ. 103, 105, 106 वारन्ट, वही, पृ. 93 2. दे. वही, पृ. 109 | श्रावस्ती ही बौद्धों का सावत्थी या नही. पू. 189 देखो वही, पृ. 204, 214 याकोबी, वही, पृ. 2641 सावत्यीपुर और जैनों चन्द्रपुर या चन्द्रिकापुर है ।' 3. देखो प्रधान, वही, पृ. 213; रायचौधरी, वही, पृ. 99 । परिशिष्ट 3, पृ. 56-57; एक हिल, वही पु. 70-71 प्रधान, वही, पृ. 215 । 4. देखो हरनोली वही टेल्स, सं. 7. पू. 110 7, 7 5. सोलह महाजनपदों के नाम बौद्ध परम्परा के अनुसार इस प्रकार है-हासी, कोसल, संग, मगध, बज्जि, मल्ल, चेतिय (चेटि), वंश ( वत्स ), कुरु, पांचाल, मच्छ (मत्स्य), सूरसेन, प्रास्सक, प्रावंती, गंधार, और कंबोज । जैनों के भगवतीसूत्र में इनकी सूची इस प्रकार दी है, बंग, मगह (मगध), मलय, मालव, अच्छ, वच्छ (वत्स), कोच्द्र ( कच्छ ? ), पाढ ( पाण्ड्य), लाढ (रात), बज्जि ( वज्जि), मोली, कासी, कोसल, प्रवह, सम्भुत्तर (सम्भोर ?) डॉ. रायचौधरी ने इस सूचियों पर इस प्रकार टिप्पण किया है यह देख पड़ता है कि अंग Jain Education International वत्स, वज्जि, । मगध स व कासी धार कोसल दोनों सूचियों में समान रूप से है भगवती का मानव कदाचित् अंगुत्तर का प्रवन्ती ही है। मौली संभवतया मल्लों का अपभ्रन्श है। - "रायचौधरी, बहीं, 59-60 1 वही, पृ. 97-98 देखो लाहा, बि. च., वही पु. 161 । राज्यटन, शीफनर्सटिवेटन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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