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________________ [ 99 'रायसिंह'1 के इतने अधिक उल्लेख हैं कि उनको देखते हए इससे इन्कार किया ही नहीं जा सकता है कि वह नातपुत्त और उनके धर्म का अनन्य और नैष्ठिक अनुयायी था। फिर भी उसमें की अनेक बातों की सूक्ष्म परीक्षा करने के पूर्व अन्य प्राधारों से यह पता लगाना आवश्यक और उपयोगी होगा कि शैशुनाग-काल में मगध साम्राज का बल कितना था क्योंकि धर्म की उन्नति, अन्ततः तो, जनता और राज्याश्रय पर ही बहुत कुछ प्राधार रखती है। इसके लिए हमें मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए शैशुनाग राजों के किए युद्धों और राजनैतिक दावपेचों के विवरण में जाना जरा भी आवश्यक नहीं है। हमें तो कौन महाजनपद स्पष्ट रूप से हार गए थे अथवा किनन परोक्षत: मगध का अधिपत्य स्वीकार कर लिया था, इतना ही जानना उपयोगी है। प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में बिबसार के समय की भारतवर्ष की राजकीय परिस्थिति पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। डॉ. ह्रिस डेविड्स लिखता है कि छोटे-छोटे अनेक वच रहे आभिजातिक गणतन्त्रों के अतिरिक्त चार अधिक व्यापक और सत्ता सम्पन्न गणतन्त्र थे।" इनके पिता भी छोटे-छोटे ग्रीक गणन्तत्र और कुछ अनार्य राज्य भी थे। हम यह तो पहले ही देख पाए है कि स्वतन्त्र गणतन्त्रों में वैशाली के वज्जि और कुसीनारा एवम् पावा के मल्ल अति महत्व के थे। फिर भी उस समय के राजकीय इतिहास में न तो ये गणतन्त्र और न अन्य राज्य इतने अधिक महत्व के थे जितने कि प्रसेनजित, उदायन, प्रद्योत और बिंबमार शासित क्रमश: कोसल, वत्म, अवन्ती और मगध के चार बड़े राज्य थे। इनमें के मगध साम्राज्य के वास्तविक संस्थापक बिंबसार अथवा श्रेणिक ने प्रभावशाली पड़ोसी राज्यों से लग्न सम्बन्ध जोड़कर अपनी सत्ता खूब ही दृढ़ कर ली थी। उसमें का एक सम्बन्ध तो उसने वैशाली के प्रभाविक लिच्छवियों के साथ और दूसरा कोसल राजवंश के साथ जोड़ा था। कोसल की रानी के दहेज में उसे कासी जिले का एक लाख की प्राय का एक गांव स्नान-सिंगार व्यय के लिए ही दिया गया था । इन दोनों लग्न सम्बन्धों का उल्लेख पहले किया ही जा चुका है, फिर भी यहां इतना और कहना आवश्यक है कि ये दोनों ही राजकीय दृष्टि से महत्व के थे क्योंकि उनके द्वारा मगध के उत्तर और पश्चिम में विस्तार का मार्ग उन्मुक्त हो गया था। इस दीर्घदर्शी राजनीति से उत्तर पश्चिम के राज्यों का वर दूर कर बिंबसार को अग देश की राजधानी चपा को जीतने का अपना लक्ष अबायित रूप से बनाने का अवसर मिल गया कि जिसे जैसा कि हम देख पाए हैं, कुछ वर्ष पूर्व ही कोसाम्बी के राजा शतानीक ने जीत कर ध्वंस कर दिया था। अंग को विजय कर बिंबसार ने खालसा कर दिया याने अपने राज्य में ही उसे मिला लिया। अग के मगध में मिला लिये जाने के दिन से ही मगध की महत्ता और भव्यता प्रारम्भ होती है। जैन साहित्य भी इसका समर्थन करता है क्योंकि वह सुचित करता है कि अंग का शासन पृथक प्रदेश रूप में किया जाता था और उसका शासक था मगध का राजकुमार कुरिणक और उसकी राजधानी थी चम्पा ।' डॉ. रायचौधरी कहता है कि “इस प्रकार बिबसार ने अंग और कासी का एक भाग अपने साम्राज्य में जोड़ 1....रायसिहो...-उत्तराध्ययन, अध्ययन 20 गाथा 58 । 2. ह्रिस डेविड्स, बुद्धीस्ट इण्डिया, पृ. 1 । 3. देखो रायचौधरी, वही, पृ. 116, 120 । 4. देखो रायचौधरी, वही, पृ. 124, प्रधान, वही, पृ. 214 । 5. देखो स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ. 33 । 6. चम्पायी कूणिका राजा वभूव...भगवती, सूत्र 300, पृ. 16 । देखो दे, बएसो, पत्रिका 1914, पृ. 322; हेमचन्द्र, परिशिष्टपर्वन्, सर्ग 4, श्लो. 7,9; रायचौधरी, वही, पृ. 125%; प्रौपपातिकसूत्र, सूत्र 6। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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