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कहलाते थे और जो बारह चौमासे उनने वैशाली में बिताए उनके विषय में कल्पसूत्र में उल्लेख "शाली और वायग्राम में बारह "" कह कर किया गया है। डॉ. हरनोली और नन्दलाल दे इससे एक कदम आगे बढ़कर कहते हैं कि ये तो वैशाली ही थे क्योंकि वैशाली का प्राचीन नगर कुण्ठपुर या वाणिजग्राम भी कहलाता या धोर अन्त में वे यह स्वीकार कर लेते हैं कि लिच्छवियों की रियासत वैशाली के ये पृथक विभाग थे। *
इस प्रकार इतना तो स्पष्ट है ही कि कुण्डग्राम वैशाली के तीन प्रमुख विभागों में से एक था और इस वैशाली का शासन ग्रीक नगर राज्यों के शासन से मिलता जुलता सा मालूम होता है। इस काल की विचित्र राज्य अवस्था स्वतन्त्र नियमादि संस्थाएं रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताएं एवम् व्यवहार सब भारत के उस संक्रमण काल की झांकी हमें कराते हैं जब कि प्राचीन वैदिक संस्कृति नव विकास साध रही थी और उस कल्पनाशील प्रवृत्ति में प्रभावित होकर सद्भूत परिवर्तन पा रही थी कि जिसमें नई सामाजिक-धार्मिक स्थिति का परिस्फुटन हुआ।
डा. हरनोली कहता है कि 'वह एक अल्पजनमत्ताक (ओलीगार्गिक रिपब्लिक) राज्य था; उसकी सत्ता उसके निवासी वंशों के नायकों के बने हुए मण्डल में वेष्टित रहती थी। राजा का नाम धारण करनेवाला थिकारी उस मण्डल का सभापतित्व करता था और उसको एक प्रधान और एक सेनाध्यक्ष सहायता करते थे। ऐसे प्रजासत्ताक राज्यों में वैशाली के वज्जि और कुशीनारा (कुसीनगर) एवम् पावा के मल्ल राज्य महत्व के थे । रोम के जैसे ही विदेह में राजसत्ता के नष्ट हो जाने पर वज्जियों का प्रजासत्ता स्थापित हुई थी । " इस प्रकार पुरानी राजसत्ता के स्थान में कुण्डग्राम और अन्य स्थलों को क्षत्रिय जातियों को प्रमुखता में वैशाली जैसे प्रजासलाक महाराज्य स्थापित हुए थे। यद्यपि देश के राजकीय वातावरण में पसरी हुई मंशुनाग की महान सत्ता का विचार करते हुए ऐसे प्रजासत्ताक राज्य ग्रल्पसमयी ही थे, फिर भी उस काल में इनका प्रस्तित्व और प्रभाव तो स्वीकार किए बिना चल ही नहीं सकता है ।
डा. लाहा कहता है कि 'मौयों की सार्वभौम राजनीति की वृद्धि और विकास के पूर्व उत्तर भारत में बसती भिन्न भिन्न आर्य प्रजा में प्रचलित राजकीय संस्थानों की प्राचीन प्रजासत्ताक राजनीति का खयाल पाली भाषा के
1. याकोबी, वहीं पृ. 264
2. "वारिण्यगाम (संस्कृ. वाणिज्यग्राग) लिच्छवी देश की राजधानी वैसाली (संस्कृ. वैशाली) के मुख्याल नगर का दूसरा नाम... | कल्पसूत्र में... इसको अलग बताया गया है, परन्तु वैशाली के बहुत निकट में । बात यह है कि, जिसे वैसाली साधारणतः कहा जाता है वह नगर बहुत व्यापक क्षेत्र में फैला हुआ था जिसकी परिधि में सालोलास (धाज का बसाढ़) के सिया... अनेक और भी स्थान थे। इन अन्य स्थानों में ही वाणियगाम और कुण्डगाम या कुण्डपुर से प्राज भी वाणिया और वसुकुण्ड नाम के ग्राम रूप में ये विद्यमान हैं इसलिए संयुक्त नगर को जैसा अवसर हो, उसके किसी भी ग्रवयवांश के नाम से परिचय कराया जाता है।" - हरनोली वही, भाग 2, पू. 3-4 बारियागाम वैशाली या (वसाद), मुजफ्फरपुर ( तिरहुत) जिले में वस्तुत: वालियागामा वैशाली के प्राचीन नगर का एक अंश ही था... कुण्डगाम मुजफ्फरपुर ( तिरहुत) जिले के वैशाली आधुनिक बसाद) का यह दूसरा नाम है वस्तुतः कुण्डगाम (कुण्डग्राम) जिसे अब बकुण्ड कहते हैं, वैशाली के प्राचीन नगर के उपनगर का ही एक भाग था ।" दे, वही, पृ. 23,107
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3. देखो श्रीमती स्टीवन्सन, वही, पृ. 22 रायचौधरी वही, पृ. 75-761
4. वही. पृ. 52. 116 | देखो टामस, एफ. डब्ल्यू., कैहिड, भाग 1, पृ. 491 ।
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