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________________ बौद्धों में दिए वनों से ठीक ठीक होता है और उसका समर्थन मोठं साम्राज्य की स्थापना के लिए उत्तरदायी राजनीतिज्ञ महान् ब्राह्मण' कौटिल्य भी करता है । हमारे अभिप्राय के लिए इसलिए इतना ही कहना पर्याप्त है कि नाय या नात जाति के मुख्य पुरुष सिद्धार्थ ने राज्य और राज्यमण्डल में उच्चपद प्राप्त किया ही होगा कि जिसके फलस्वरूप वह एक प्रजासत्ताक राजा की बहन त्रिशला से विवाह कर सका था । " अवज्ञानिकों का विचार करने पर हम देखते हैं कि उनने भारतवर्ष को एक सर्वोत्तम धार्मिक सुधारक दिया था और जैसा कि हम कार देख ही चुके हैं, जब वया लिच्छवी राजमण्डलों की मुख्य जातियां में भी इनका स्थान था, तब क्षत्रिय जाति के रूप में उसका महत्व स्वतः सिद्ध हो जाता है क्योंकि यह वृता लिच्छवी मैत्री संघ' के प्रमुख कुलों में से एक थी। सिद्धार्थ और उनके पुत्र तीर्थ कर महावीर की यही ज्ञात्रिक कुल था। इनका प्रमुख नगर कुण्डपुर या कुण्डग्राम और कोल्लाग, वैशाली के उपनगर थे। फिर भी ये सालिए अथवा वैशाली निवासी कहे जाते थे। 4 राजा सिद्धार्थ और रानी का पुत्र महावीर निःसंदेह ज्ञातृक कुल का एक नर रन था इस अद्वितीय व्यक्ति का महान् प्रभाव अपने जाति भाइयों पर कितना था. इस विषय में इनके घोर विरोधी दौड़ों के धर्मशास्त्रीय साहित्य में ही इस प्रकार उल्लेख मिलता है वह संघका पुरुष महान गुरु महान श लोकमान्य महान अनुभवी दीर्घ तपस्वी वयोवृद्ध और परिपत्र या का है।" 1 93 " हम देख ही पाए हैं कि महावीर और उनके मातापिता श्री पार्श्वनाथ के धर्म के अनुयायी थे और इसलिए नाय क्षत्रियों की सारी जाति ही उसी धर्म की अनुयायिनी हो यह बहुत सम्भव है। ऐसा मालूम होता है कि यह नावजाति महावीर के पुरोगामी पार्श्व के अनुयायी साधू-समुदाय का पोषण करती थी और जब महावीर ने धर्मप्रवर्तन किया, तब उनकी जाति के सदस्य उन्हीं धर्म के श्रद्धाशील अनुयायी हो गए। सूत्रकृतांग में कथन है कि जिनने महावीर प्ररूपित धर्म का अनुसरण किया वे 'सदाचारी और प्रामाणिक' हैं और वे 'परस्पर एक दूसरे को धर्म में दृढ़ करते हैं ।" इस प्रकार महावीर की ही ज्ञाति के होने के कारण ज्ञात्रिकों पर नाम के सिद्धांत का स्वभावाया अत्यधिक प्रभाव पड़ा जैनसूत्र शात्रिकों का पादर्श चिप प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वे पाप और पापमय 1. लाहा, वि.च, वही, पृ. 1-21 2. देखो श्रीमती स्टीयन्सन, वही, पृ. 22; याकोबी, वही, प्रस्ना पृ. 121 3. कुल का नाम नाय या नाथ ही दिया गया है। देखो लाहा. वि. च. वही, पृ. 121 हरनोली वही, पृ. 4 टिप्पण | 4. उवासगदसाप्रो में कोल्लाग के विषय में इस प्रकार कहा गया है 'वारिणयागाम नगर के बाहर, उत्तर-पूर्वी दिशा में कोल्ला नाम का एक उपनगर था जो विस्तृत, गुर... महलोवाला प्रादि-पादि था। 'हरनोली वही, पृ. 8 देखो वही पु. 4 टिप्पण मुजफ्फरपुर (तिरहुत) जिले के वैशाली (साह) का उप नगर, जिसमें नायकुल क्षत्रिय रहते थे जैन तीर्थकर महावीर इसी क्षत्रिय जाति के थे' दे, वही, पृ. 102 1 1 5. रायचौधरी, वही, पृ. 74 | देखो वारन्यैट, वही, प्रस्ता. पृ. 6; हरनोली, वही और वही स्थान । 6. नाहा. वि. च., वही पू. 124 125 1 7. देखो श्रीमती स्टीवन्सन, वही, पृ. 31 लाहा, बि. च.. वही. पू. 123 1 8. देखो पाकोबी, सेमुई, पुस्त. 45, पृ. 2561 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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