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________________ लेकिन हमें यह विचार करना होगा कि क्या यह अपवाद मार्ग था या उतसर्ग मार्ग था। यदि हम कल्पसूत्र के उसी पाठ को देखें तो उसमें यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि इसके पूर्व तो पर्युषण एवम् सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना कल्पता है, किन्तु वर्षा ऋतु के एक मास और बीस रात्रि का अतिक्रमण करना नहीं कल्पता है-'अंतरा वि य कप्पइ (पज्जोसवित्तए) नो से कप्पइ तं रयणि उवाइणा वित्तए। निशीथ भाष्य 3153 की चूर्णि में और कल्पसूत्र की टीकाओं में जो भाद्रशुक्ल चतुर्थी को पर्युषण या संवत्सरी करने का कालक आचार्य की कथा के साथ जो उल्लेख है वह भी इसी बात की पुष्टि करता है कि भाद्र शुक्ल पंचमी के पूर्व तो पर्युषण किया जा सकता है किन्तु उस तिथि का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। निशीथ चूर्णि में स्पष्ट लिखा है कि"आसाढ़ पूणिमाए पज्जोसेवन्ति एस उसग्गो सेसकालं पज्जोसेवन्ताणं अववातो । अववाते वि सवीससतिरातमासातो परेण अतिकम्मेउण वट्टति सवीसतिराते मासे पुण्णे जति वासखेत्तं ण लब्भति तो रूक्ख हेट्ठावि पज्जोसवेयव्व । तं पुण्णिमाए पंचमीए, दसमीए, एवमादि पव्वेसु पज्जुसवेयव्वं नो अपवेसु“अर्थात् आषाढ़ पूर्णिमा को पर्युषण करना यह उत्सर्ग मार्ग है और अन्य समय में पर्युषण करना यह अपवाद मार्ग है । अपवाद मार्ग में भी एक मास और 20 दिन अर्थात् भाद्र शुक्ल पंचमी का अतिक्रमण नहीं करना चाहिये। यदि भाद्र शुक्ल पंचमी तक भी निवास के योग्य स्थान उपलब्ध न हो तो वृक्ष के नीचे पर्युषण कर लेना चाहिये। अपवाद मार्ग में भी पंचमी, दशमी, अमावस्या एवं पूर्णिमा करना चाहिए, अन्य तिथियों में नहीं। इस बात को लेकर निशीथ भाष्य एवं चूर्णि में यह प्रश्न भी उठाया गया है कि भाद्र शुक्ल चतुर्थी को अपर्व तिथि में पर्युषण क्यों नहीं किया जाता है। इस सन्दर्भ में कालक आचार्य की कथा दी गयी है। कथा इस प्रकार है - कालक आचार्य विचरण करते हुए वर्षावास हेतु उज्जयिनी पहुँचे, किन्तु किन्हीं कारणों से राजा रूष्ट हो गया, अत: कालक आचार्य ने वहाँ से विहार करके प्रतिष्ठानपुर की ओर प्रस्थान किया और वहाँ के श्रमण संघ को आदेश भिजवाया कि जब तक हम नहीं पहुँचते तब तक आप लोग पर्युषण न करें । वहाँ का सातवाहन राजा श्रावक था, उसने कालक आचार्य को सम्मान के साथ नगर में प्रवेश कराया। प्रतिष्ठानपुर पहुंचकर आचार्य ने घोषणा की कि भाद्र शुक्ल पंचमी को पर्युषण करेंगे। यह सुनकर राजा ने निवेदन किया कि उस दिन नगर में इन्द्रमहोत्सव होगा। अत: आप भाद्र शुक्ल पष्ठि को पर्युषण कर लें, किन्तु आचार्य ने कहा कि शास्त्र के अनुसार पञ्चमी का अतिक्रमण करना कल्प्य नहीं हैं। इस पर राजा ने कहा कि फिर आप भाद्र जैन एकता का प्रश्न : २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003245
Book TitleJain Ekta ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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