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________________ - worwwwxnxnnnnnnnn.marwannrn.ornantimrainrranoram ४२) श्राचारांग सूत्र woman अन्य मनुष्यों को मार्ग बतलाते हैं। और कितने ही वीर उनकी आज्ञा के अनुसार पराक्रम करते ही हैं, तो कितने की आत्मा के ज्ञान को न जानने वाले संसार में भटकते रहते हैं। [ १८१, १७२ ] धर्म स्वीकार करके सावधान रहे और किसी में प्रासक्ति न रखे । महामुनि यह सोचकर कि यह सब मोहमय ही है, संयम में ही लीन रहे । सब प्रकार से अपने सगे-सम्बन्धियों को त्याग कर मेरा कोई नहीं है, मैं किसी का नहीं हूँ ऐसा सोचकर विरत मुनि को संयम में ही यत्न करते हुए विचरना चाहिये । इस प्रकार का जिन की आज्ञा के अनुसार आचरण करना ही उत्कृष्टवाद कहलाता है । उत्तम धर्म के स्वरूप को समझ कर दृष्टिमान पुरुष परिनिर्वाण को प्राप्त करता है । जो फिर संसार में नहीं आते, वे ही सच्चे 'अचेलक' (नग्न) हैं। [१८३-१८४,१६५] शुद्ध प्राचारवाला और शुद्ध धर्मवाला मुनि ही कर्मों का नाश कर सकता है। बराबर समझ कर संसार के प्रवाह से विरुद्ध चल कर संयम धर्म का आचरण करने वाला मुनि, तीर्ण, मुक्त और विरत कहलाता है। इस प्रकार बहुत काल तक संयम में रहते हुए विचरने वाले भिक्षु को अरति क्या कर सकती है ? [ १८५-१८७ ] ... ऐसे संयमी को अन्तकाल तक युद्ध में आगे रहने वाले बीर की उपमा दी जाती है। ऐसा ही मुनि पारगामी हो सकता है। किसी भी कष्ठ से न डर कर और पूर्ण स्थिर और दृढ़ रहने वाला वह संयमी शरीर के अन्त समय तक काल की राह देखता रहे पर दुःखों. से घबरा कर पीछे न हटे। बहुत समय तक संयम धर्म का पालन करते हुए विचरने वाले इन्द्रिय निग्रही पूर्वकाल के महापुरुषोंने जो सहन किया है, उस तरफ लक्ष्य रखो। [१६६, १८५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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