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कर्मनाश
कामों में प्रासक्त ये जीव अपने क्षणभंगुर तथा बिना बल के शरीर द्वारा बारबार वध को प्राप्त होते हैं । इस प्रकार तड़फने पर भी ये जीव बारबार उन्हीं कर्मों को करते रहते हैं। विविध दुःखों और अनेक रोगों से पीड़ित ये मनुष्य अत्यन्त परिताप सहन करते हैं। इसलिये, हे मुनि, रोगों के कारण रूप विषयों की कामना को तू स्याग दे तू उनको महा भय रूप समझ और उनके कारण से अन्य जीवों की हिंसा मत कर । [ १७२-१७८ ]
तेरी इच्छा सुनने की हो तो मैं तुझे कर्मनाश का मार्ग कह सुनाऊँ । संसार में विविध कुलों में जन्म लेकर और वहां सुख में पल कर जागृत हो जाने पर कितने ही मनुष्यों संसार का त्याग करके मुनि बने हैं। उस समय संयम के लिये पराक्रम करते हुए उन मुनियों को देख कर उनके स्वछन्दी और विषयासक्त सगे सम्बन्धियों ने दुःखी होकर रो रो कर उनसे उन्हें न छोड़े कर जाने की विननि की। परन्तु उन मुनियों को उनमें अपनी शरण नहीं जान पड़ती, फिर वे क्यों उनमें श्रासक्ति रखने लगे? जिसने अपने प्रेमी और सम्बन्धियों को छोड़ दिया है, वही असाधारण मुनि संसार-प्रवाह को पार कर सकता है। ऐसे ज्ञान की सदा उपासना करो, ऐसा मैं कहता हूँ। [ १७६, १८७] - संसार को काम-भोग से पीड़ित जानकर और अपने पूर्व सम्बन्धों का त्याग करके उपशमयुक्त और ब्रह्मचर्य में स्थित त्यागी और गहस्थ को ज्ञानी के पास से धर्म को यथार्थ जानकर उसी के अनुसार आचरण करना चाहिये । जीवों की सब योनियों को बराबर समझने वाले, उद्यमी, हिंसा के त्यागी और समाधियुक्त ऐसे ज्ञानी
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