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________________ सुख और दुःख [ २१ और द्वेष से अस्पृष्ट रहने वाला छेदन-भेदन को प्राप्त नहीं होता, न वह जलता और न मारा ही जाता है । [ ११४, ११६ ] माया आदि कषायों से और विषयासक्ति रूप प्रमाद से युक्त मनुष्य बारबार गर्भ को प्राप्त होता है । किन्तु शब्दरूपादि विषयों में तटस्थ रहनेवाला सरल और मृत्यु से डरने वाला जन्ममरण से मुक्त हो सकता है । ऐसा मनुष्य कामों में श्रप्रमत्त, पापकर्मी से उपरत, वीर, और श्रात्मा की सब प्रकार से (पापों से ) वाला, कुशल तथा संसार को भयस्वरूप समझने वाला होता है । [१०६, १११] I लोगों में जो अज्ञान है, वह हित का कारण है । दुःख मात्र आरंभ ( सकाम प्रवृत्ति और उसके परिणाम में होने वाली हिंसा) से उत्पन्न होता है, ऐसा समझ कर, श्रारंभ हितकर हैं, यह मानो | कर्म से यह सब सुखदुःखरूपी उपाधि प्राप्त होती है। निष्कर्म मनुष्य को संसार नहीं बंधता । इस लिये कर्म का स्वरूप समझ कर और कर्ममूलक हिंसा को जान कर, सर्व प्रकार से संयम को स्वीकार करके; राग और द्वेष से दूर रहना चाहिये । बुद्धिमान लोक का स्वरूप समझ कर, कामिनी-कांचन के प्रति अपनी लालसा का त्याग कर के, दूसरा सब कुछ भी छोडकर संयम धर्म में पराक्रम करे | [१०६, १०६, १०० ] रक्षा करने और संयमी कितने ही लोग झागे-पीछे का ध्यान नहीं रखते, क्या हुआ और क्या होगा, इसका विचार नहीं करते । कितने ही ऐसा भी कहते हैं कि जो हुआ है, वही होगा । परंतु तथागत ( सत्यदर्शी ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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