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श्राचारांग सूत्र
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पुरुष कहते है कि कर्म की विचित्रता के कारण जैसा हुआ है, वैसा ही होगा, यह बात नहीं है और जैसा होता है, वैसा ही होना चाहिये, यह बात भी नहीं है । इस को अच्छी तरह समझ कर मनुष्य शुद्ध आचरण वाला बनकर कर्म का नाश करने में तत्पर बने । [ ११६ ]
हे धीर पुरुष ! तू संसारवृक्ष के मूल और डालियों को तोड़ फैक । इसका स्वरूप समझकर नैष्कर्म्यदर्शी (आत्मदर्शी) बन । दुःख के स्वरूप को समझने वाला सम्यग्दर्शी मुनि परम मार्ग को जान लेने के बाद पाप नहीं करता । पदार्थों का स्वरूप समझ कर उपरत हुआ वह बुद्धिमान् सब पापकर्मों को त्याग देता है । [ १११ ]
हे श्रार्य पुरुष ! तू जन्म मरण का विचार करके और उसे समझ कर प्राणियों के सुख का ध्यान रख । तू पाप के मूल कारण रूप लोगों के सम्बन्ध की पाश (जाल) को तोड़ दे। इस पाश के कारण ही मनुष्य को हिंसा जीवी बनकरः जन्ममरण देखना पड़ता है । [999]
बुद्धिमान को सब पर समभाव रख कर तथा संसार के सम्बन्धों को बराबर जान कर सब प्राणियों को अपने समान ही समझना चाहिये | और हिंसा से विरत होकर किसी का हनन करना और करवाना नहीं चाहिये । मूर्ख मनुष्य ही जीवों की हिंसा करके प्रसन्न होता है । पर वह मूर्ख यह नहीं जानता कि वह खुद ही वैर बढ़ा रहा है । अनेक बार कुगति प्राप्त होने के बाद बड़ी कठिनता से मनुष्यजन्म को प्राप्त करने पर किसी भी जीव के प्राणों
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