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तीसरा अध्ययन -(•)
सुख और दुःख
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संसार के लोगों की कामनाओं का पार नहीं है । वे चलनी में पानी भरने का प्रयत्न करते हैं । उन कामनाओं को पूरी करने में दूसरे प्राणियों का वध करना पड़े, उनको परिताप देना पड़े, उनको वश में करना पड़े या सारे के सारे समाज को वैसा करना पड़े तो भी वे श्रागे-पीछे नहीं देखते हैं । काममूढ़ और रागद्वेष में फंसे हुए वे मन्द मनुष्य इस जीवन की मान-पूजा में श्रसक्त रहते हैं । और अनेक वासनाओं को इकट्ठी वासनाओं के कारण वे बारबार गर्भ को प्राप्त होते मूढ़ मनुष्य धर्म को न जान सकने के कारण जरा ही रहता है । [११३, १११, ११६, १०८ ]
करते हैं । इन
हैं ।
विषयों में
और
मृत्यु के
वश
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इसी लिये वीर मनुष्य विषयसंग से प्राप्त होने वाले बंधन के स्वरूप को और उसके परिणाम में प्राप्त होने वाले जन्ममरण के शोक को जान कर संयमी बने तथा छोटे और बड़े सब प्रकार की
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वस्था में वैराग्य धारण करे । हे ब्राह्मण ! जन्म और मरण को समझ कर तू संयम के सिवाय दूसरी तरफ न जा, हिंसा न कर, न करा, तृष्णा से निर्वेद प्राप्त कर, स्त्रियों से विरक्त होकर उच्चदर्शी बन, और पापकर्मों से छूट । संसार की जाल को समझकर राग
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