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________________ तीसरा अध्ययन -(•) सुख और दुःख 999656 संसार के लोगों की कामनाओं का पार नहीं है । वे चलनी में पानी भरने का प्रयत्न करते हैं । उन कामनाओं को पूरी करने में दूसरे प्राणियों का वध करना पड़े, उनको परिताप देना पड़े, उनको वश में करना पड़े या सारे के सारे समाज को वैसा करना पड़े तो भी वे श्रागे-पीछे नहीं देखते हैं । काममूढ़ और रागद्वेष में फंसे हुए वे मन्द मनुष्य इस जीवन की मान-पूजा में श्रसक्त रहते हैं । और अनेक वासनाओं को इकट्ठी वासनाओं के कारण वे बारबार गर्भ को प्राप्त होते मूढ़ मनुष्य धर्म को न जान सकने के कारण जरा ही रहता है । [११३, १११, ११६, १०८ ] करते हैं । इन हैं । विषयों में और मृत्यु के वश Jain Education International इसी लिये वीर मनुष्य विषयसंग से प्राप्त होने वाले बंधन के स्वरूप को और उसके परिणाम में प्राप्त होने वाले जन्ममरण के शोक को जान कर संयमी बने तथा छोटे और बड़े सब प्रकार की • वस्था में वैराग्य धारण करे । हे ब्राह्मण ! जन्म और मरण को समझ कर तू संयम के सिवाय दूसरी तरफ न जा, हिंसा न कर, न करा, तृष्णा से निर्वेद प्राप्त कर, स्त्रियों से विरक्त होकर उच्चदर्शी बन, और पापकर्मों से छूट । संसार की जाल को समझकर राग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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