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________________ ग्यारहवाँ अध्ययन -(0) शब्द भिनु या भिक्षुणी चारों प्रकार (१. मढ़े हुए वाद्य-मृदंग श्रादि, २. तंतु वाद्य - तार आदि से खिंचे हुए वीणा श्रदि, ३. ताल वाय-झांझ आदि, ४ शुषिरवाद्य - फूंक से बजने वाले, शंख श्रादि ) के वाघों के शब्द सुनने की इच्छा से कहीं न जावे । [ १६८ ] भिक्षु या भिक्षुणी अनेक स्थानों पर होने वाले विविध प्रकार के शब्द सुनने कहीं न जावे । भिक्षु पाड़े, बैल, हाथी या कपिंजल पक्षी की लडाई के शब्द सुनकर वहाँ न जावे। वर कन्या के लग्नमंडप या कथा मंडप में भी न जावे इसी प्रकार हाथी घोड़े आदि की बाजीमें या जहाँ नाचगान की धूम मची हो, वहाँ भिक्षु न जावे । [ १६९ ] जहाँ खींचतान मची हो, लड़ाई झगड़े हो रहे हों या दो राज्यों के बीच झगड़ा हो, वहाँ न जावे । लकड़ी को सजाकर, घोड़े पर बैठाकर उसके आसपास होकर लोग जा रहे हों या किसी पुरुष को मृत्युदंड देने को वधस्थान पर क्षे जा रहे हों तो वहाँ न जाये । जहाँ अनेक गाड़ियां, रथ अथवा म्लेच्छ या सीमान्त लोगों के कुंड हों या मेले हों, वहाँ भी न जावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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