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________________ - शब्द [१२१ जहां अनेक बूढ़े, बच्चे या अवान स्त्री-पुरुष गाते, बजाते या नाचते हों, हंसी-खेल करते हों और खा-पी कर कोई उत्सव आदि मना रहे हों, वहां भी न जावे । संक्षेप में इस लोक या परलोक के सुने हुए या न सुने हुए, देखे हुए या न देखे हुए शब्दों में प्रासक्त या मोहित न हो [ १७० ] __भिक्षु या भिक्षुणी के प्राचार की यही सम्पूर्णता है .....श्रादि भाषा अध्ययन के अन्त-पृष्ट १०४ के अनुसार । बारहवाँ अध्ययन -(.)रूप भिक्षु या भिक्षुणी विविध प्रकार के रूप, जैसे-गूंथकर बनाया हुना, घड़ी करके बनाया हुआ, भर कर बनाया हुआ, जोड कर बनाया हुआ, लकड़ी खोदकर बनाया हुश्रा, लेप करके बनाया हुआ, चित्र कर बनाया हुआ; मणि आदि से, हाथीदांत से, मालाओं से या पत्ते श्रादि काटकर बनाया हुआ—देखने के लिये कहीं न जावे । [१७१] (यहाँ से भागे पृष्ट १२० में शब्द अध्ययन के सब वाक्य, 'शब्द' के बदले 'रूप' लगाकर समझे) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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