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________________ मलमूत्र का स्थान [ ११8 जिस स्थान पर गृहस्थ श्रादिने मूंग, उड़द, तिल्ली, कुलथी, ज आदि बोये हों, वहाँ भिक्षु मल-मूत्र का त्याग न करे । जहाँ मनुष्यों के लिये भोजन बनता हो, या भैंस, पाड़े घोड़े, कबूतर आदि पशुपक्षी रखे जाते हों वहाँ भिक्षु मलमूत्र का त्याग न करे । जिस स्थान पर मनुष्य किसी को गीदड़ों से नुचवाते हों, पेड़ या खाते हों, अग्निप्रवेश करते हों, वहाँ भिक्षु आराम, उद्यान, वन, प्याऊ आदि स्थानों पर मजमूत्र का इच्छा से फाँसी लेते हों खुद पर्वत से गिरकर मरते हों, विप भिक्षु मलमूत्र का त्याग न करे । उपवन देवमंदिर, सभागृह या त्याग न करे ! भिक्षु किले के बुर्ज, किजे या नगर के मार्ग, दरवाजे और गोपुर श्रादि स्थानों पर मलमूत्र का त्याग न करे । जहाँ तीन या चार रास्ते मिलते हों, वहाँ भिक्षु मलमूत्र का त्याग न करे । [ १६६ ] निवड़ा, चूने की भट्टी, श्मशान, स्तूप, देवमंदिर, तीर्थ नदी किनारे के स्थान, तालाब के पवित्र स्थान, मिट्टी की नई खान, नया गोचर, खान या शाक पत्र, फूल, फल आदि के स्थान में भिक्षु मलमूत्र का त्याग न करे । भिक्षु श्रपना या दूसरे का पात्र लेकर, खुले बाड़े में या स्थानक में एकान्त जगह पर, कोई देख न सके और जीवजन्तु से रहित स्थान पर जावे, वहां मलमूत्र करके, उस पात्र को लेकर खुले बाडे में या जली हुई जमीन पर या ऐसी ही कोई निर्जीव जगह पर एकान्त में कोई देखे नहीं, वहां उसको सावधानी से डाल श्रावे । [ १६३] भिक्षु या भिक्षुणी के आधार की यही सम्पूर्णता है...... आदि भाषा अध्ययन के अन्त - पृष्ट १०४ के अनुसार : Jain Education International For Private & Personal Use Only नदी पर के पानी - नाली, www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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