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पुद्गल परिणामनेकी शक्ति सौ वैक्रिय शरीरनाम कर्म ११ एवं आहारिक लब्धीवालेके शरीरपणे परिणामावे १२ तैजस शरीर अंदर शरीरमें उक्षता, . आहार पचावनेकी शक्तिरूप, सो तैजस नाम कर्म १३ जिसकी शक्ति सें कर्मवर्गणाकों अपने अपने कर्म प्रकृतिके परिणामपणे परिणामावे सो कार्मण शरीर नामकर्म १४ दो बाहु २ दो साथल ४ पीठ ५ मस्तक ६ उरुछाती ७ उदर पेट ८ से आठ अंग और अंगोके साथ लगा हुआ, जैसें हाथसें लगी अंगुली साथलसें लगा जानु, गोठा आदि इनका नाम उपांग है, शेष अंगुलीके पर्व रेखा रोम नखादि प्रमुख अंगोपांग है, जिसके उदयसे ये अंगोपांग पावे और इनपणे नवीन पुद्गल परिणमावे ऐसी जो कर्मकी शक्ति तिसका नाम उपांग नामकर्म है. उदारीकोपांग १५ वैक्रियोपांग, १६ आहारिकोपांग, १७ इति उपांग नामकर्म ॥ पूर्वे बांध्या हुआ उदारिक शरीरादि पांच प्रकृति और इन पांचोके नवीन बंध होते को पितले साथ मेलकर के बधावे जैसे राल लाखादि दो वस्तुयोंकों मिला देते है, तैसेही जो पूर्वापर कर्मको संयोग करे, सो बंधन नामकर्म शरीरोंके समान पांच प्रकारका है, उदारिकबंधन वैक्रियबंधन इत्यादि एवं, २२ प्रकृति हुइ . पांच शरीरके योग्य बिखरे हुए पुद्गलांको एकठे करे, पीछे बंधन नामकर्म बंध करे, तिस एकठे करणे वाली कर्म प्रकृतिका नाम संघातन नामकर्म है, सो पांच प्रकारका है, उदारिक संघातन, वैक्रिय संघातन इत्यादि एवं, २७ सत्ताइस प्रकृति हुइ, अथ उदारिक शरीरपणे जो सात धातु परिणमी है तिनमें हाडकी संधिको जो द्रढ करे तो संहनन नामकर्म, सो छ ६ प्रकारका है, तिनमेंसें जहां दोनो हाड दोनों पासे मर्कट बंध होवे, तिसका नाम नराच है, तिन दोनों हाडों के उपर तीसरा हाठ पट्टेकी तरें जकड बंध होवे तिसका नाम ऋषभ है, इन तीनो हाडके भेदनेवाली उपर खीली होवे तिसका नाम वज्र है, ऐसी जिस कर्मके उदयसें हाडकी संधी द्रढ होवे तिसका नाम वज्र ऋषभ नराच संहनन नामकर्म है. २८ जहां दोनों हाडों के छेदके मर्कटबंध मिले हुए होवे, और उनके उपर तीसरे हाडका पट्टा होवे, ऐसी हाड संधी जिस कर्मके उदयसें होवे सो ऋषभ नराच संहनन नाम कर्म २९ जिन हाडोका मर्कटबंध तो होवे परंतु पटा और कीली न होवे, जिसके उदयसें सो नाराच संहनन नामकर्म, ३० जहां एक पासें मर्कटबंध और दूसरे पासे खीली होवे जिस कर्मके उदयसें सो अर्द्ध नराच संहनन नाम कर्म ३१ जैसे खीली सेंदो कष्ट जोडि होवे तैसें हाडकी संधी जिस कर्मके उदयसें
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