SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होवे, सो कीलिका संहनन नामकर्म ३२ दोनो हाडों के छेहडे मिले हुए होवे जिस कर्म सें सो सेवार्त्त संहनन नामकर्म ३३ जिस कर्मके उदयसे सामुद्रिक शास्त्रोक्त संपूर्ण लक्षण जिसके शरीर में होवे तथा चारो अंस बराबर होवे, पलाठी मारके बैठे तब दोनों जानुका अंतर और दाहिने जानुसें वामास्कंध और वामेजानुसें दाहिनास्कंध और पलाठी पीठसें मस्तक मापता चारों डोरी बराबर हौवे, और बत्तीस लक्षण संयुक्त होवे, ऐसा रूप जिस कर्म के उदयसें होवे तिसका नाम समचतुस्त्र संस्थान नामकर्म ३४ जैसें वड वृक्षका उपल्या भाग पूर्ण होवे है, तैसेही जो नाभीसें उपर संपूर्ण लक्षणवाला शरीर होवे और नाभी से नीचे लक्षण हीन होवे, जिस कर्मके उदयसें सो निग्रोध परिमंडल संस्थान नामकर्म ३५ जिसका शरीर नाभीसें नीचे लक्षणयुक्त होवे, और नाभीसें उपर लक्षण रहित होये, जिस कर्मके उदयसें सो सादिया संस्थान नामकर्म ३६ जहां हाथ पग मुख ग्रीवादिक उत्तम सुंदर होवे, और हृदय, पेट, पूंठ लक्षण हीन होवे जिस कर्मके उदय से सो कुब्ज संस्थान नामकर्म ३७ जहां हाथ पग लक्षण हीन होवे, अन्य अंग लक्षण संयुक्त अछे होवें, जिस कर्मके उदयसे सो वामन संस्थान नामकर्म ३८ जहां सर्व शरीर के अवयव लक्षण हीन होवे सो हुंडक संस्थान नामकर्म, ३९ जिस कर्म के उदय जीवका शरीर मषी, स्याही नील समान काला होवे तथा शरीरके अवयव काले होवे सो कृष्णवर्ण नामकर्म ४० जिसके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव सूर्यकी पुष्ठ तथा जंगाल समान नील अर्थात् हरित वर्ष होवें, सो नीलवर्ण नामकर्म ४१ जिसके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव लाल हिंगलुं समान रक्त होवे, सो रक्त वर्ण नामकर्म ४२ जिस कर्मके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीर के अवयव पीत हरिताल, हलदी चंपकके फूल समान पीले होवे, सो पीतवर्ण नामकर्म ४३ जिस कर्मके उदयसें जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव संख स्फटिक समान उज्वल होवे, सो शुक्ल वर्ण नामकर्म ४४ जिसके उदयसे जीवके शरीर तथा शरीर के अवयव सुरभि गंध अर्थात् कर्पूर, कस्तूरी, फूल सरीखी सुगंधी होवे, सो सुरभीगंध नामकर्म ४५ जिस कर्मके उदयसें जीवके शरीर तथा शरीरके अवयव दुरभिगंध लशुन मृतक शरीर सरीखी दुरभिगंध होवे, सो दुरभिगंध नामकर्म ४६ जिसके उदयसे जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव नींब चिरायते सरीसा रस होवे, सो तिक्तरस नामकर्म ४७ जिसके उदयसें जीवका शरीरादि सूंठ, ८३ ३७००७ Jain Education International ०००००००० ०००००० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy