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सामीना सामीनारायण एक ईश्वर| स्त्री और तत् ग्रंथ | रंगे वस्त्र रायण १७.
| परिग्रह धारी | पाठक वाले धोले
| वस्त्रां वाले दयानंद दयानंद एक ईश्वर अस्ति तन्मत पाठक | साधु मत १८.
इत्यादि इस तरे मतधारीयोंने पंच परमेष्टीकी जगे पांच २ वस्तु कल्पना करी है, इस वास्ते पंच परमेष्ठीके बिना अन्य कोइ सृष्टिका कर्ता सर्वज्ञ वीतराग ईश्वर नही है, निःकेवल लोकांको अज्ञान भ्रम में सृष्टि कर्ताकी कल्पना उत्पन्न होती है, पूर्व पद्म कोइ प्रश्न करे के जेकर सर्व इस वीतराग ईश्वर जगतका कर्ता नही है, तो यह जगत अपने आप कैसे उत्पन्न हुआ, क्योंकि हम देखते है कर्ताके विना कुछभी उत्पन्न नही होता है, जैसे धकीलादि वस्तु तिसका उत्तर है परीक्षको ! तुमकों हमारा अभिप्राय यथार्थ मालुम पाडता नही है, इस वास्ते तुम कर्ता ईश्वर कहते हो, जो इस जगत में बनाइ हुइ वस्तु है, तिसका कर्ता तो हम भी मानते है, जैसें घट, पट शराब, उदंचन, घडियाल , मकान, हाट, हवेली, संकल, जंजीरादि परंतु आकाश, काल, स्वभाव, परमाणु, जीव इत्यादि वस्तुयां किसीकी रची हुइ नही है, क्योंकि सर्व विद्वानोका यह मत है के जो वस्तु कार्य रूप उत्पन्न होती है तिसका उपादान कारण अवश्य होना चाहिये. विना उपादानके कदापि कार्यकी उत्पत्ति नही होती है, जो कोइ विना उपादान कारण के वस्तुकी उत्पति मानता है, सो मूर्ख, प्रमाणका स्वरूप नही जानता है, तिसका कथन कोइ महा मूढ मानेगा, इस वास्ते आकाश १ आत्मा २ काल ३ परमाणु ४ इनका उपादान कारण कोइ नही है, इस रास्ते ये चारो वस्तु अनादि है, इनका कोई रचने वाला नही है, इस्में जो यह कहा नै कि सर्व वस्तुयों ईश्वरने रची है सो मिथ्या है, अब शेष वस्तु पृथ्वी १ पानी २ अग्नि ३ पवन ४ वस्नपति ५ चलने फिरने वाले जीव रहे है, तथा पृथ्वीका भेद नरक, स्वर्ग, सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, तारादि है, ये सर्व जड चैतन्यके उपादानसें बने है, जे जीव और जड परमाणुओंके संयोगसें वस्तु बनी है, वे उपर पृथ्वी आदि लिख आये है, ये पृथ्वी आदि वस्तु प्रवाह से अनादि नित्य है, और पर्याय रूप करके अनित्य है, और ये जड चैतन्य अनंत स्वभाविक शक्तिवाले है, वे
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