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पूर्व.११ | पद. प्रमाण |संयमादिका शुभ फल | २६००००००० थी और सर्व प्रमादादि पापोंका
अशुभ फल कथन करा है प्राणायु एक करोड २०४८ हाथी|पांच इंद्रिय और मनबल, पूर्व १२ | पचाश लाख. प्रमाण प्रमाण वचनबल, १५००00000
कायाबल और उच्छवास निःश्वास और आयु इन दशो प्राणाका |जहां विस्तार में स्वरूप
|कथन करा है. क्रिया | नव करोड ४०९६ हाथी जिसमे विशाल | पद.
प्रमाण कायक्यादि क्रिया पूर्व . १३ | ९००००००० शाही से वा संयमक्रिया
लिखा छंदक्रियादि क्रिया
जावे योंका कथन है. लोक वि | साढेवारा करोड ८१९२ हाथी लोक में वा श्रुतज्ञान दुसार पद. प्रमाण. लोक में अक्षरोपरि पूर्व १४ | १२५००००००
|षिद् समान सार सर्वोत्तम सर्वाक्षरोंके मिलाप जाननेकी
लब्धिका हेतु जिसमें है. प्र.१५४. जैन मतके पंच परमेष्टिकी जगे प्राचीन और नवीन मत धारीयोने अपनी बुद्धि अनुसारे लोकोंने अपने अपने मतमें किस रीते से कल्पना करी है, और जैनी इस जगतकी व्यवस्था किस हेतु से किस रीतीसें मानते है ? उ. मतधारीयोने जो जैनमतके पंच परमेष्टीकी जगे जूठी कल्पना खडी करी है, सो नीचले यंत्रसें देख लेनां, जैनमत १ अरिहंत १ सिद्ध २ | आचार्य ३ | उपाध्याय ४ | साधु ५. सांख्यमत २ कपिल | | आसुरी | विद्यापाठक | सांख्य साधु वैदिकमत ३ | जैमनि | भद्रप्रभाकर विद्यापाठक
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