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________________ पूर्व ४ । नास्तिरूप है तिस का कथन है अथवा सर्व वस्तु स्वरूप कर के अस्तिरूप है और पररूप करके नास्ति |रूप है ऐसा कथन है. ज्ञान प्रवाद एक करोड पद | १६ हाथी | पांचो ज्ञान मति पूर्व |१००००००० प्रमाण आदि तिनका महा १ एक पद न्यून विस्तार में कथन है. सत्यप्रवाद | एककरोड पद |३२ हाथी | सत्य संयम वचन इन |१००००००० प्रमाण. | तीनोका विस्तार ६ पद अधिक. से कथन है. आत्मप्रवाद छब्बीस करोड ६४ हाथी आत्मा जीव तिसका वाद पूर्व पद. प्रमाण सातसौ ७०० नयके मतोंसे स्वरूप २६०००००००| कथन करा है. ख्यान कर्मप्रवाद | एक करोड १२८ हाथी ज्ञानावरणीयादि अस्सी हजार. प्रमाण अष्ट कर्मका प्रकृति ८ १००८०००० स्थिति अनुभाव प्रदेशादि सें स्वरूपका कथन करा है. प्रत्या चोरासीलाख २५६ हाथी प्रत्याख्यान त्याग पद. प्रमाण. ने योग्य वस्तुयोका प्रवाद ८४००००० और त्यागका विस्ता पूर्व. ९ रसें कथन करा है. विद्यानु एक करोड ५१२ हाथी अनेक अतिशयवंत प्रवाद पू दस लाख पद. | प्रमाण. चमत्कार करनेवाली व. १० । |११०००००० अनेक विद्यायोंका कथन है. अवंध्य छब्बीस करोड | १०२४ हा | जिसमें ज्ञान, तप, - WEAGUAGE0%8A6000000AGEDOAGEADER ५ 000000000000000000000000006036AGAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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