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जल्लोसहि लद्धी ४-जिस साधुके शरीरका पसीना तथा मैलभी रोग दूर कर सके, तिसकों जल्लोषधि लब्धि कहते है, यहनी साधुकोंभी होती है.
सर्वोसहि लद्धी ५-जिस साधुके मलमूत्र केश रोम नखादिक सर्वोषधि रूप हो जावे, सर्व रोग दूर कर सकें, तिसकों सर्वोषधि लब्धि कहते है, यह साधुको होती है.
संभिन्नासोए लद्धी ६-जो सर्व इंद्रियोंसे सुणे, देखे, गंध सूंघे, स्वाद लेवे, स्पर्श जाणे एकैके इंद्रियसें सर्व इंद्रियांकी विषय जाणे अथवा बारा योजन प्रमाण चक्रवर्तिकी सेनाका पडाव होता है, तिसमे एक साथ वाजते हुए सर्व वजंत्रोकों अलग अलग जान सके तिसको संभिन्न श्रोत्र लब्धि कहते है, यह साधुको होवे है.
इहिनाण लद्धी ७-अवधिज्ञानवंतको अवधिज्ञान लब्धि होती है, यह चारो गतिके जीवांको होती है, विशेष करके साधुकों होती है.
रिउमइलद्धी ८-जिस मनः पर्यायज्ञानसें सामान्य मात्र जाणे, जैसे इस जीवने मनमें घट चिंतन करा है इतना ही जाणे, परंतु ऐसा न जानेकि वैसा घट किस क्षेत्रका उत्पन्न हुआ किस कालमें उत्पन्न हुआ है, अथवा अढाइ द्वीपके मनुष्यो के मनके बादर परिणामा जाणे तिसकों उजुमति लब्धि कहते है, यह निश्चय साधुकों होती है अन्य को नही.
विउलमइ लद्धी ९-जिस मनः पर्यायसे रुजुमतिसें अधिक विशेष जाणे, जैसें इसने सोनेका घट चिंतन करा है. पाटलिपुत्रका उत्पन्न हुआ बसंतऋतका अथवा अढाइ द्वीपके संज्ञी जीवांके मनके सूक्ष्म पर्यायांकोंभी जाणे, तिसकों विपुलमति लब्धि कहते है, इसका स्वामी साधुही होवे, यह लब्धि केवल ज्ञानके विना हुआ जाए नही.
चारण लद्धी १०-चारण दो तरेके होते है, एक जंघा चारण १ दूसरा विद्या चारण २ जंघा चारण उसकों कहते है जिसकी जंघायोंमें आकाशमें उडनेकी सक्ति उत्पन्न होवे सो जंधा चारण, उंचातो मेरु पर्वतके शिखर तक उसके जा सकता है, और तिरछा तेरमे रुचक द्वीप तक जा सकता है,
और विद्याचारण उंचा मेरु शिखर तक और तिरछा आठमें नंदीश्वर द्वीप तक विद्याके प्रभावसें जा सकता है, येह दोनो प्रकारकी लब्धिकों चारण लब्धि कहते है, यह साधुकों होती है.
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