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________________ आसीविष लद्धी ११-आशी नाम दाढाका है, तिनमें जो विष होवे सो आशीविष . सो दो प्रकारे है, एक जातिआशीविष दूसरा कर्मआशीविष , तिनमें जाति जहरी के चार भेद है. विषु १ सर्प २ मीरुक ३ मनुष्य ४ और तप करने सें जिस पुरुषको आशीविष लब्धि होती है सो शाप देके अन्यकों मार सकता है, तिसकोंनी आशीविष लब्धि कहते है. - केवल लब्धी १२-जिस मनुष्यकों केवलज्ञान होवे, तिसकों केवलि नामे लब्धि है. ___ गणहर लद्धी १३- जिससे अंतर मुहूर्तमें चौदह पूर्व गूंथे और गणधर पदवी पामें, तिसकों गणधर लब्धि कहते है. पुव्वधर लद्धी १४-जिससें चौदहपूर्व दश पूर्वादि पूर्वका ज्ञान होवे, सो पूर्वधर लब्धि. अरहंत लद्धी १५-जिससे तीर्थंकर पद पावे, सो अरिहंत लब्धि. चक्कवट्टि लद्धी १६-चक्रवर्तीकों चक्रवर्ती लब्धि. बलदेवलद्धी १७-बलदेवकों बलदेवलब्धि. वासुदेवलद्धी १८-वासुदेवकों वासुदेवकी लब्धि. खीरमहुसप्पिआसव लद्धी १९-जिसके वचनमें ऐसी शक्ति है कि तिसकी वाणि सुणके श्रोता ऐसी तृप्त हो जावे के मानु दूध, धृत, शाकर, मिसरीके खाने से तृप्त हुआ है, तिसकों खीरमधुसर्पिआसव लब्धि कहते है, यह साधुकों होती है. कुठय बुद्धि लद्धी २०-जैसे वस्तु कोठे में पड़ी हुइ नाश नही होती है, ऐसे ही जो पुरुष जितना ज्ञान सीखे सो सर्व वैसे का तैसाही जन्मपर्यंत भूले नही, तिसकों कोष्टक बुद्धि लब्धि कहते है. पयाणुसारी लद्धी २१-एक पद सुनने में संपूर्ण प्रकरण कर देवे, तिसकों पदानुसारी लब्धि कहते है. बीयबुद्धि लद्धी २२-जैसें एक बीजसें अनेक बीज उत्पन्न होते है, तैसेही एक वस्तु के स्वरूपके सुनने में जिसको अनेक प्रकारका ज्ञान होवे, सो बीजबुद्धि लब्धि है. तेउलेसा लद्धी २३-जिस साधुके तपके प्रश्नावसें ऐसी शक्ति उत्पन्न 1600GBAGDAGDAG00000000000004GBAGBAGB00 ५ AGADA%A0000000000AGAG0080GBAGAL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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