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________________ सैंकडो जिन प्रतिमाभी महा सुंदर विद्यमान कालमे विद्यमान है, और संप्रति राजाने ७०० सौ दानशाला करवाई थी. और प्रजाके महा हितकारी उषधशालादिनी बनवाइथी, इत्यादि संप्रतिराजाने जैनमतकी वृद्धि और प्रभावना करी थी. विरात् २९१ वर्ष पीछे हुआ है. प्र. १३०. मनुष्यों मे कोई ऐसी शक्ति विद्यमान है कि जिसके प्रभाव सें मनुष्य अद्भुत काम कर सकता है ? उ. मनुष्य में अनंत शक्तियों कर्माके आवरणसें ढंकी हुइ है, जेकर वे सर्व शक्तियां आवरण रहित हो जावेंतो मनुष्य चमत्कारी अद्भुत काम कर सतके है. प्र. १३१. वे शक्तियां किसने ढांकनोकी है ? उ. आठ कर्माकी अनंत प्रकृतियोने आच्छादन कर छोडी है । प्र.१३२. हमनेतो आ कर्मकी १४८ वा १५८ प्रकृतियां सुनी है, तो तुम अनंत किस तरेसें कहेते है ? उ. एकसो १४९ वा १५८ यह मध्य प्रकृतियांके भेद है और उत्कृष्टतो अनंत भेद है, क्योंके आत्माके अनंत गुण है, तिनके ढांकनेवालीयां कर्म प्रकृतियांभी अनंत है. प्र.१३३ . मनुष्य में जो शक्तियां अद्भुत काम करनेवालीयां है तिनका थोडासा नाम लेके बतलाउ, और तिनका किंचितस्वरूपभी कहौ, और यह सर्व लब्धियां किस जीवकों किस कालमें होतीयां है ? उ. आमोसहि लद्धी १- जिस मुनिके हाथादिके स्पर्श लग्नेसें रोगीका रोग जाए, तिसका नाम आमर्षोषधि लब्धि है, मुनि तिस लब्धिवाळा कहा जाता है, यह लब्धि साधुही कों होती है. विप्पोसहि लद्वी २ - जिस साधुके मल मूत्रके लगने से रोगीका रोग जाए, तिसका नाम विप्पोषधि लब्धि है, इस लब्धिवाले मुनिका मल, विष्टा और मूत्र सर्व कर्पूरादिवत् सुगंधिवाला होता है, यह लब्धि साधुकोही होती है. खेलोसहि लद्वी ३-जिस साधुका श्लेष्म थूकही उषधिरूप है, जिस रोगीके शरीरकों लग जावेतो तत्काल सर्व रोग नष्ट हो जावे, यह सुगंधित होता है, यह लब्धि साधुकों होती है, इसकों श्लेष्मोषधि लब्धि कहते है. ५४ Jain Education International ७०००००० For Private & Personal Use Only ver www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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