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________________ अशुभ कर्माके उदयकों दूर करने में देवताभी निमित्त है. प्र.१२७. जैनधर्मी अथवा अन्यमति देवते विना कारण किसी कों दुख दे सकते है के नही ? उ. जिस जीव के देवताके निमित्त से अशुभ कर्मका उदय होना है, तिसकों तो द्वेषादि कारणसें देवते दुःख दे सकते है, अन्य को नही. प्र.१२८. संप्रतिराजा कौन था ? उ. राजगृह नगरका राजा श्रेणिक जिसका दूसरा नाम बंभसार था, तिसकी गद्दी उपर तिसका बेटा अशोकचंद्र दूसरा नाम कोणिक बैठा, तिसने चंपानगरीकों अपनी राजधानी करी, तिसके मरां पिछे तिसकी गद्दी उपर तिसका बेटा उदायि बैठा , तिसने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र नगरमें करी सो उदायि बिना पत्रके मरण पाया, तिसकी गद्दी उपर नायिका पुत्र नंद बैठा, तिसकी नव पेढीयोने नंदही नामसें राज्य करा, वे नव नंद कहलाए. नवमें नंदकी गद्दी उपर मौर्य वंशी, चंद्रगुप्तराजा बैठा, तिसकी गद्दी उपर तिसका पुत्र बिंदुसार बैठा, तिसकी गद्दी उपर तिसका बेटा अशोकश्रीराजा बैठा, तिसका पुत्र कुणाल आंखासें अंधा था, इस वास्ते तिसकों राज गद्दी नही मिली, तिस कुणालका पुत्र संप्रति हआ, सो जिस दिन जन्म्याथा तिस दिनही तिसकों अशोकश्री राजाने अपनी राजगद्दी ऊपर बैठाया, सो संप्रति नामे राजा हुआ है. श्रेणिक १ कोणिक २ उदायि ३ यह तीनो तो जैनधर्मी थे, नव नंदोकी मुझे खबर नही , कौनसा धर्म मानते थे. चंद्रगुप्त १ बिंदुसार ए दोनो जैनीराजे थे, अशोकश्रीजी जैनराजा था, पीछेसें केइक बौद्धमति हो गया कहते है, और संप्रति तो परम जैनधर्मीराजा था. प्र.१२९ संप्रति राजाने जैनधर्मके वास्ते क्या क्या काम करे थे. उ. संप्रतिराजा सुहस्ति आचार्यका श्रावक शिष्य १२ बारां व्रतधारी था, तिसने द्रविक अंध करणाटादि और काबुल कराशानादि अनार्य देशोमें जैनसाधुयोका विहार करके तिनके उपदेशसें पूर्वोक्त देशोमें जैन धर्म फैलाया, और निनानवे ९९००० हजार जीर्ण जिन मंदरोंका उद्धार कराया, और बव्वीस २६००० हजार नवीन जिनमंदिर बनवाए थे, और सवाकिरोड १२५००००० जिन प्रतिमा नवीन बनवाइ थी, जिनके बनाए हए जिनमंदिर गिरनार नडोलादि स्थानोमे अबभी मौजूद खडे है, और तिनकी बनवाइ हुइ 1G0000AGOOGOAGAG00000000000000000GORG 00000GOOGDAGAGAGDAGAGDAGDAGOGGOAGO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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