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उ.
प्रतिमा विना भगवंतका स्वरूप स्मरण नही हो सकता है, इस
वास्ते जिन प्रतिमा विना गृहस्थलोकोसे जिनराजकी भक्ति नही हो सकती
प्र.१२२. जिन प्रतिमातो पाषाणादिकी बनी हुई है, तिसके पूजने गुणस्तवन करने से क्या लाभ होता है ?
उ. हम पथ्थर जानके नही पूजते है, किंतु तिस प्रतिमा द्वारा साक्षात् तीर्थंकर भगवंत की पूजा स्तुति करते है. जैसे सुंदर स्त्रीकी तसबीर देखनेसे असल स्त्रीका स्मरण होकर कामी काम पीडित होता है तैसे ही जिन प्रतिमा के देखने से भक्तजनोको असली तीर्थंकरका रूपका स्मरण होकर भक्तोंका जिन भक्ति कल्याण होता है.
प्र.१२३ . जिन प्रतिमाकी फूलादिसें पूजा करने से श्रावकों को पाप लगता है के नही ?
उ. जिन प्रतिमाकी फूलादिसें पूजा करने से संसारका क्षय करे, अर्थात् मोक्ष पद पावे, और जो किंचित् द्रव्य हिंसा होती है, सो कूपके द्रष्टांत पूजा के फलसे ही नष्ट हो जाति है, यह कथन आवश्यक सूत्र में है. प्र.१२४. सर्व देवते जैन धर्मी है ?
उ. सर्व देवते जैन धर्मी नही है, कितनेक हे.
प्र.१२५. जैन धर्मी देवता की भगती श्रावक साधु करे के नही ?
सम्यग् द्रष्टी देवताकी स्तुति करनी जैनमतमें निषेध नही, क्योंकि श्रुत देवता ज्ञान के विघ्नोकों दूर करते है, सम्यग् द्रष्टि देवते धर्ममे होते विघ्नोकों दुर करते है, और कोइ भोला जीव इस लोकार्थके वास्ते सम्यग् द्रष्टि देवतायोंका आराधन करेतो तिसकाभी निषेध नही है. साधुभी सम्यग् द्रष्टि देवताका आराधना स्तुति जैनधर्मकी उन्नति तथा विघ्न दुर करने बास्ते करे तो निषेध नही. यह कथन पंचाशकादि शास्त्रों में है.
प्र.१२६ . सर्व जीव अपने करे हुए कर्मका फल भोगते है. तो फेर देव ते क्या कर सकते है ?
उ. जैसें अशुभ निमित्तो के मिले अशुभ कर्मका फल उदय होता है, तैसे शुभ निमित्तोके मिलने में अशुभ कर्मोदय नष्टभी हो जाता है,
इस वास्ते
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