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अनंत मे भाग प्रमाण जीवअतीत काल में मोक्षपद पाये है, और तिनमें से अनंतमें भाग प्रमाण अनंत जीव अनागत काल में मोक्ष पद पावेंगे, इस रास्ते मोक्ष मार्ग बंद नही होवेगा.
प्र.१०३. आत्मा अमर है के नाशवंत है ? उ. आत्मा सदा अविनाशी है, सर्वथा नाशवंत नही है.
प्र.१०४. आत्मा अमर है, अविनाशी है, इस कथनमें क्या प्रमाण है ?
उ. जिस वस्तुकी उत्पत्ति होती है, सो नाशवंत होता है, परंतु आत्माकी उत्पत्ति नही हुइ है, क्योंकि जिस वस्तुकी उत्पत्ति होती है तिसका उपादान अर्थात् जिसकी आत्मा बन जारे जैसे धडेका उपादान मिट्टीका पिंडे है, तो उपादान कारण कोइ अरूपी ज्ञानवंत वस्तु होनी चाहिये, जिससे आत्मा बने, ऐसा तो आत्मासे पहिला कोइभी उपादान कारण नहीं है, इस वस्ते आत्मा अनादि अनंत अविनाशी वस्तु है ।
प्र.१०५. जेकर कोइ ऐसे कहे आत्मा का उपादान कारण ईश्वर है, तबतौ तुम आत्माकों अनित्य मानोगेके नही.
उ. जब ईश्वर आत्माका उपादान कारण मानोगे, तबतो ईश्वर और सर्व अनंत संसारी आत्मा एकही हो जावेगी, क्योंकि कार्य अपणे उपादान कारण से भिन्न नही होती है ।
प्र.१०६. ईश्वर और सर्व संसारी आत्मा एकही सिद्ध होवेगेतो इसमे क्या हानि है ?
उ. ईश्वर और सर्व संसारी आत्मा एकही सिद्ध होवेगे तो नरक तिर्यंचकी गतिमेभी ईश्वरही जावेगा और धर्माधर्मभी सर्व ईश्वरही करनेवाला और चौर, यार, लुच्चा, लफंगा, अगम्यगामी इत्यादि सर्व कामका कर्ता ईश्वरही सिद्ध होवेगा, तबतो वेदपुराण, बैबल, कुरान प्रमुख शास्त्रनी ईश्वरने अपनेही प्रतिबोध वास्ते रचे सिद्ध होवेंगे, तबतो ईश्वर अज्ञानी सिद्ध होवेगा. जब अज्ञानी सिद्ध हुआ तबतो तिसके रचे शास्त्रभी जूठे और निष्फल सिद्ध होवेगे, ऐसे जब सिद्ध होगा तबतो माता, बहिन, बेटीके गमन करनेकी शंका
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