________________
नही रहेगी, जिसके मनमें जो आवे सो पाप करेगा, क्योंके सर्व कुछ करने कराने फल भोगने भुक्ताने वाला सर्व ईश्वरही है, ऐसे मानने से तो जगतमे नास्तिक मत खडा करना सिद्ध होवेगा.
प्र.१०७. जीवकों पुनर्जन्म किस कारणसें कारण पडता है ?
उ.जीवहिंसा,१ जूठ बोलना, २ चौरी करनी, ३ मैथुन, स्त्रीसें भोग करना , ४ परिग्रह रखना, ५ क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ एवं ८ राग १० द्वेष ११ कलह १२ अभ्याख्यान अर्थात् किसीकों कलंक देना १३ पैशुन १४ परकी निंदा करनी १५ रति अरति १६ माया मृषा १७ मिथ्यादर्शन शल्ल, अर्थात् कुदेव, कुगुरु, कुधर्म, इन तीनोको सुदेव, सुगुरु, सुधर्म करके मानना १८, जब तक जीव येह अष्टादश पाप सेवन करता है, तब तक इसको पुनर्जन्म होता है।
प्र.१०८ जीवकों पुनर्जन्म बंद होने का क्या रस्ता है ?
उ. उपर लिखे हुए अष्टादश पापका त्याग करे, और पूर्व जन्मांतरोमें इन अष्टादश पापोंके सेवने से जो काँका बंध करा है, तिसकों अहँतकी आज्ञानुसार ज्ञान श्रद्धा जप तप करने से सर्वथा नाश करे तो फेर पुनर्जन्म नही होता है.
प्र.१०९. तीर्थंकर महाराजके प्रभाव से अपना कल्याण होवेगा, के अपनी आत्मा के गुणा के प्रभावसे हमारा कल्याण होवेगा ?
उ. अपनी आत्माका निज स्वरूप केवल ज्ञान दर्शनादि जब प्रगट होवेगे, तिसके प्रभावसें हमारी तुमारी मोक्ष होवेगी.
प्र.११०. जेकर निज आत्माके गुणों से ही मोक्ष होवेगी, तबतो तीर्थंकर भगवंतकी भक्ति करनेका क्या प्रयोजन है ?
उ. तीर्थंकर भगवंतकी भक्ति करने में तीर्थंकर भगवंत निमित्त कारण है. विना निमित्तके अपनी आत्मा के गुणरूप उपादान कारण कदेइ फल नही देता है. तीर्थंकर निमित्तभूत होवे तब भक्तिरूप उपादान कारण प्रगट होता है तिससेंही, आत्मा के सर्व गुण प्रगट होते है, तिनसें मोक्ष होता है. जैसे घट होने मे मिट्टी उपादान कारन है, परंतु विना कुलाल चक्र दंभ चीवरादि
concengan ASOCIACORCORDONCINO
JAGAGDAGAG0000AGOOGBAGAGAGDAGDAGAR
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org