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उ. निर्वाण हूआ पीछे आत्मा लोक के अग्र भागमे जाता है, और सादि अनंत काल तक सदा तहांही रहता है ।
प्र.९८. कर्म रहित आत्माकों लोकाग्र में कौन ले जाता है ? उ. आत्मामें उर्द्धगमन स्वभाव है, तिस से आत्मा लोकाग्र तक जाता
प्र.९९. आत्मा लोकाग्रसें आगे क्यों नही जाता है ?
उ. आत्मामें उर्द्धगमन स्वभाव तो है, परंतु चलनेसे गति साहायक धर्मास्तिकाय लोकाग्रमें आगे नहीं हैं, इस वास्ते नही जाता है, जैसें मनमे तरने की शक्तितो है, परंतु जल विना नही तरसक्ता है, तैसें मुक्तात्माभी जानना
प्र.१००. सर्व जीव किसी कालमें निर्वाणपद पावेंगे के नही ? उ. सर्व जीव निर्वाण पद किसी कालमें नही पावेंगे.
प्र.१०१. क्या सर्व जीव एक सरीषे नही है, जिसमें सर्व जीव निर्वाण पद नही पावेंगे.
उ. जीव दो तरे के है, एक भव्य जीव है १, दुसरे अभव्य जीव है, तिनमें जो अभव्य जीव होवे तो कदेभी निर्वाण पदकों प्राप्त नही होवेंगे, क्योंकि तिनमे अनादि स्वभावसेंही निर्वाण पद प्राप्त होने की योग्यताही नही है, और जो भव्य जीव है तिनमें निर्वाणपद पावनेकी योग्यता तो है, परंतु जिस जिसकों निर्वाण होनेके निमित्त मिलेंगे वे निर्वाणपद पावेंगे, अन्य नही.
प्र.१०२. सदा जीवां के मोक्ष जाने से किसी कालमें सर्व जीव मोक्षपद पावेंगे, तबतो संसार में अभव्य जीवही रह जायेंगे, और मोक्ष मार्ग बंद हो जावेगा ?
उ. भव्य जीवांकी राशि सर्व आकाश के प्रदेशोंकी तरे अनंत तथा अनागत कालके समयकी तरें अनंत है. कितना ही काल व्यतीत होवे तोभी अनागत कालका अंत नहीं आता है, इसी तरें सदा मोक्ष जानेसें जीवभी खूटते नही है. इस लोक में निगोद जीवां के असंख्य शरीर है, एकैक शरीर में अनंत अनंत जीव है, एक शरीर में जितने अनंत अनंत जीव है, तिनमें से
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