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पूछयां प्रश्नोके उत्तर कथन करके पीछे ५५, पचपन शुभ विपाक फल नामे अध्ययनों में से एक प्रधान नामे अध्ययन कथन करते हुए निर्वाण प्राप्त हुए थे. यह कथन संदेह विषौषधी नामे ताड पत्रोपर लिखी हुइ पुरानी कल्पसूत्रकी टीकामे है. येह सर्वाध्यायन श्री सुधर्मस्वामीजीने सूत्र रूप गूंथे होवेंगे के नही, ऐसा लेख मेरे देखनेमें किसी शास्त्रमें नही आया है.
प्र.९४. जैनमतमे यह जो रूढिसें कितनेक लोक कहते है कि श्री उत्तराध्ययनजीके छत्तीस अध्ययन दिवालीकी रात्रिमें कथन करके और ३७ सैंतीसमा अध्ययन कथन करते हुए मोक्षगये, यह कथन सत्य है, वा नही ?
उ. यह कथन सत्य नही, क्योंकि कल्प सूत्रकी मूल टीकासें विरुद्ध है, और श्री भद्रबाहुस्वामीने उत्तराध्ययनकी नियुक्तिमें ऐसा कथन करा है कि उत्तराध्ययनका दूसरा परीषहाध्ययनतो कर्मप्रवाद पूर्वके १७ सत्तरमें पाहुडसें उद्धार करके रचा है, और आठमाध्ययन श्री कपिल केवलीने रचा है, और दशमाध्ययन जब गौतमस्वामी अष्टापदसें पीछे आए है, तब भगवंतने गौतमको धीर्य देने वास्ते चंपानगरीमें कथन करा था, और २३ मा अध्ययन कथन करा था, और २३ मा अध्ययन केशीगौतमके प्रश्नोत्तर रूप स्थविरोने रचा है. कितने अध्ययन प्रत्येक बुद्ध मुनियोके रचे हुए है, और कितनेक जिन भाषित है. इस वास्ते उत्तराध्ययन दिवालीकी रात्रि मे कथन करा सिद्ध नहीं होता
प्र.९५. निर्वाण शब्दका क्या अर्थ है ?
उ. सर्व कर्म जन्य उपाधि रूप अग्निका जो बुझ जाना तिसकों निर्वाण कहते है, अर्थात् सर्वोपाधिसें रहित केवल शुद्ध, बुद्ध सच्चिदानंद रूप जो आत्माका स्वरूप प्रगट होना, तिसकों निर्वाण कहते है ।
प्र.९६. जीवकों निर्वाण पद कब प्राप्त होता है ?
उ. जब शुभाशुभ सर्व कर्म जीव के नष्ट हो जाते है तब जीवको निर्वाणपद प्राप्त होता है।
प्र.९७. निर्वाण हूआ पीछे आत्मा कहां जाता है, और कहां रहता है ?
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