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________________ आयु तुम वधावो, क्योंकि तुमारे एक क्षणमात्र अधिक जीवने से तुमारे जन्म नक्षत्रोपरि भस्म राशिनामा तीस ३० मा ग्रह आया है, सो तुमारे शासनकों पीडा नही दे सकेगा, तब भगवंतने ऐसे कहाके हे इंद्र , यह पीछे कदेइ हुआ नही, और होवेगाभी नही कि कोइ आयु वधा सके, और जो मेरे शासनकों पीडा होवेगीं सो अवश्य होनहार है, कदापि नही टलेगी. ___प्र.९०. तबतो कोइभी देह धारी आयु नही वधा सका है यह सिद्ध हुआ ? उ. हां, कोइभी क्षणमात्र आयु अधिक नही वधा सक्ता है. प्र.९१. कितनेक मतावलंबी कहते है कि योगाभ्यासादिके करने से आयु वध जाता है, यह कथन सत्य है वा नही ? उ. यह निकेवल अपनी महत्वता वधाने वास्ते लोकों गप्पे ठोकते है, क्योंकि चौवीस तीर्थंकर ब्रह्मा, विष्नु, महेश, पातंजली, व्यास, ईशामसींह, महम्मद प्रमुख जे जगतमें मतचलाने वाले सामर्थ पुरुष गिने जाते है, वेभी आयु नही वधा सके है, तो फेर सामान्य जीवोंमें तो क्या शक्ति है के आयु वधा सके, जेकर किसीने वधाइ होवे तो अब तक जीता क्यों नही रहा. प्र.९२. भगवंतका भाइ नंदिवर्द्धन, और भगवंतकी संसारावस्थाकी यशोदा स्त्री, और भगवंतकी बेटी प्रियदर्शना और भगवंतका जमाइ जमाली, इनका क्या वर्तत हआ था ? उ. नंदीवर्द्धन राजातो श्रावक धर्म पालता रहा और यशोदानी श्राविका तो थी, परंतु यशोदाने दीक्षा लीनी मैने किसी शास्त्र में नही बांचा है और भगवंतकी पुत्रीने एक हजार स्त्रीयोंके साथ और जमाइ जमालिने ५०० पांचसौ पुरुषों के साथ भगवंत श्री महावीरजीके पास दीक्षा लीनी थी। प्र.९३. श्री महावीर भगवंतने जो अंतमें सोलां पहर तक देशना दीनीथी, तिसमे क्या क्या उपदेश करा था ? उ. भगवंतने सर्वसें अंतकी देशनामें ५५ पचपन अशुभ कर्मोके जैसे जीव भवांतरमे फल भोगते है, ऐसे अध्ययन और पचपन ५५ शुभकर्मों के जैसे भवांतर में जीव फल भोगते है, ऐसे अध्ययन और छत्तीस ३६ विना GOOGOAGUAGEAGDAGDAGDAGORG0000AGAG000 | DAGUAGOAGOAGUAGEAGOOGOAGORGEAGOOGOAGOK Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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